अपराध का अर्थ, परिभाषाएं, अपराध के आवश्यक तत्व?

अपराध का अर्थ (Meaning of Crime)- आमतौर पर अपराध को एक ऐसा कार्य माना जाता है जो विधि द्वारा वर्जित या मना हो और जिसके लिए कानून में दंड का प्रावधान किया गया हो। लेकिन अपराध को अलग-अलग शब्दों में परिभाषित किया गया है।

अपराध की परिभाषाये (Definition of Crime)-

टेरेंस मॉरिस के अनुसार– अपराध एक ऐसा कार्य है जिस कार्य को समाज आपराधिक कानून के अतिक्रमण के रूप में स्थापित करता है, कानून के बिना अपराध बिल्कुल नहीं हो सकता बल्कि रोष हो सकता है।

जेरेमी बेंथम के अनुसार– अपराध वह है जिन्हें विधानांग ने अच्छे बुरे कारणों से निषिद्ध या मना कर दिया है।

ब्लैकस्टोन के अनुसार– अपराध सार्वजनिक कानून के अतिक्रमण के रूप में किया गया कार्य या लोप होता है। यह परिभाषा ब्लैकस्टोन ने अपनी पुस्तक कमेंट्रीस ऑन द लॉज ऑफ़ इंग्लैंड (Commentries on the Laws of England) में दी है।

स्टीफेन के अनुसार– अपराध कानून द्वारा निषेध और समाज के नैतिक मूल्यों के लिए अरुचिकर एक कार्य है।

केनी के अनुसार– अपराध ऐसे दोष को कहते हैं जिसमें अनुशास्ति दंडात्मक होती हैं और जो किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा माफ नहीं किया जा सकता और अगर माफ या क्षमा किया जा सकता है तो केवल सम्म्राट के द्वारा ही किया जा सकता है।

रसेल के अनुसार– अपराध एक कठिन शब्द है जिसकी परिभाषा देना बहुत ही मुश्किल है।

मिलर के अनुसार– कानून के द्वारा दंड के डर से निषिद्ध किसी कार्य को करना अपराध है। जिसे राज्य अपने नाम से कार्यवाही शुरू करके आरोपित करता है।

पैटन के अनुसार अपराध के सामान्य लक्षण है-
1) राज्य द्वारा कार्यवाही को नियंत्रित करना ।
2) दंड को क्षमा या माफ करना।
3) दंड देना ।

अपराध के आवश्यक तत्व (Main elements of crime):-

1) एक मानव,

2) मानव के मन में एक दुराशय।

3) ऐसे आशय को पूरा करने के लिए किया गया कोई कार्य ।

4) ऐसे कार्य द्वारा किसी दूसरे मानव या पूरे समाज को नुकसान या क्षति।
1) मानव (Human Being)- किसी कार्य को अपराध के रूप में कानून द्वारा दंडित होने के लिए उसका किसी मानव द्वारा किया जाना चाहिए। यह अपराध का पहला आवश्यक तत्व है। प्राचीनकाल में कई तरह के ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहां पशुओं या निर्जीव पदार्थ को दंड दिया जाता था।

उदाहरण के लिए– अगर किसी फसल उगे हुए खेत में खेत के मालिक के अलावा किसी अन्य व्यक्ति का गधा पाया जाता था तो उसका एक कान काट लिया जाता था और अगर वह इस अपराध को दोबारा करता था तो उसे अपने दूसरे कान से भी हाथ धोना पड़ता था।

उदाहरण के लिए- मध्यकालीन यूरोप में पशु के मालिक को पशु द्वारा किए गए दोषपूर्ण काम के लिए दंडित किए जाने के भी उदाहरण हमें मिलते हैं। अगर किसी बैल ने किसी आदमी को सींग मार दिये जिससे उसकी मृत्यु हो गई तो बैल को पत्थरों से मारा जाता था उसके मालिक को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाता था।

2) दुराशय (Mensrea)- यह अपराध का दूसरा तत्व है। दुराशय के संबंध में यह सिद्धांत बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है कि “मात्र कार्य ही किसी को अपराधी नहीं बनाता है अगर उसका मन अपराधी ना हो।” इस सूक्ति का अर्थ यह है कि किसी काम को दंडित होने के लिए इच्छा का होना चाहिए क्योंकि स्वेच्छा से किया गया कार्य ही अपराधिक आशय से किया गया होना चाहिए। अपराध को गठित करने के लिए आशय और कार्य दोनों का होना जरूरी है।

3) आपराधिक कार्य (Criminal act)- किसी अपराध के लिए एक व्यक्ति और उसका दुराशय ही काफी नहीं है क्योंकि किसी मनुष्य के आशय को हम जान नहीं सकते। किसी भी कार्य का आपराधिक होने के लिए आपराधिक आशय को किसी स्वेच्छापूर्ण कार्य के रूप में जरूर होना चाहिए और कोई कार्य अपराधिक तभी कहा जाएगा जब वह विधि द्वारा निषिद्ध या मना हो इसलिए आपराधिक कार्य का कानून द्वारा निषिद्ध होना जरूरी है।

4) मानव को अपहानि (Damage)- अपराध का चौथा जरूरी तत्व है कि व्यक्ति के अपराधिक कार्य से मानव को क्षति या नुकसान हो। क्षति को जानने के लिए भारतीय न्याय संहिता की धारा 2 (14) को जानना जरूरी है। जिसके अनुसार क्षति ऐसी अपहानि का प्रतीक है जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या संपत्ति को अवैध रूप पहुँचायी गई हो।

इस तरह से किसी भी अपराध के लिए चार जरूरी तत्व है। लेकिन कभी-कभी कुछ अपराध दुराशय के अभाव में भी हो जाते हैं जो कठोर दायित्व के मामले कहलाते हैं। इसी तरह से कुछ मामलों में आपराधिक कार्य भले ही पूरा ना हुआ हो किसी व्यक्ति को कोई हानि ना हुई हो फिर भी अपराध घटित हो जाता है। उदाहरण के लिए प्रयत्न, दुष्प्रेरण और षड्यंत्र।

इसके अलावा ऐसे भी अपराध हो सकते हैं जिनमें ना अपराधिक कार्य हो ना किसी व्यक्ति को कोई हानि। ये गंभीर अपराध के मामले होते हैं जिन्हें समाज में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से राज्य घटना घटित होने से पहले ही अपने नियंत्रण में ले लेता है।

उदाहरण के लिए– भारतीय न्याय संहिता की धारा 310 (4) में डकैती डालने के लिए तैयारी करना या धारा 310 (5) में डकैती डालने के उद्देश्य से इकट्ठा होना।

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