इद्दत(Iddat):- पति की मृत्यु या तलाक होने पर मुस्लिम विवाह का तुरंत विच्छेद नहीं होता। विवाह विच्छेद होने पर भी कुछ प्रयोजनों के लिए इद्दत की अवधि तक प्रभावी रहता है।
इद्दत क्या है-जब कोई विवाह तलाक या पति की मृत्यु के कारण विघटित हो जाता है तो स्त्री कुछ समय तक दोबारा विवाह नहीं कर सकती इस निश्चित समय को इद्दत कहा जाता है।
परिभाषा–
अमीर अली के अनुसार – इद्दत मृत्यु या तलाक द्वारा एक वैवाहिक संबंध की समाप्ति और दूसरे विवाह के आरंभ के बीच ऐसा अंतराल है जिसका पालन करना स्त्री के लिए अनिवार्य है।
न्यायमूर्ति महमूद– इद्दत एक ऐसी अवधि है जिसका पूरा करना नए विवाह को वैध बना देता है। जिसमें पहले विवाह का विच्छेद होने के बाद कोई स्त्री दूसरा विवाह नहीं कर सकती यह प्रतिक्षा की अवधि है।
इद्दत का उद्देश्य-यह निश्चित करना होता है क्या पति से गर्भवती हैं या नहीं जिससे मृत्यु या तलाक के बाद पैदा हुई संतान की पैतृकता में कोई भ्रम न हो।
इद्दत की अवधि–
i) तलाक द्वारा विवाह विच्छेद में:- 3 चंद्रमास या 3 मासिक धर्म। यदि स्त्री गर्भवती हो तो बच्चा होने तक जो भी अवधि लंबी हो।
ii) पति की मृत्यु पर – 4 माह 10 दिन यदि विधवा गर्भवती हो तो बच्चा होने तक जो भी अवधि लंबी हो।
iii) फासिद या अनियमित विवाह में–
a) मृत्यु या विवाह विच्छेद होने पर 3 चंद्रमास या 3 मासिक धर्म।
b) यदि पत्नी की इद्दत के दौरान पति की मृत्यु हो जाए तो पत्नी को नई इद्दत पति की मृत्यु के समय से शुरू करनी होगी।
c) अगर विवाह अनियमित है और विवाह की पूर्णावस्था से पहले ही पति-पत्नी अलग हो गए हैं तो कोई इद्दत नहीं होगी।
इद्दत की अवधि में अधिकार–
1) इद्दत के दौरान पति जीवनयापन के लिए भत्ता देगा।
2) पत्नी इद्दत पूरी होने तक दूसरा विवाह नहीं कर सकती। इसी तरह पति इद्दत कर रही पत्नी को मिलाकर पांचवा विवाह नहीं कर सकता।
3) पत्नी मुवज्जिल मेहर की हकदार हो जाती है।
4) इद्दत समाप्त होने से पहले यदि पति या पत्नी में से किसी की मृत्यु हो जाए तो जीवित पक्षकार संपत्ति का उत्तराधिकार पाने का हकदार होगा।
5) यदि तलाक मृत्यु रोग में दिया गया है और पत्नी की इद्दत पूरी होने से पहले पति मर जाए तो पत्नी उत्तराधिकार पाने की हकदार हो जाती है बशर्ते तलाक उसकी सहमति से ना किया गया हो।