दण्डों के विषय में भारतीय न्याय संहिता की अध्याय-2 ,धारा-(4-13)

Types Of Punishment

दण्डों के विषय में (Of punishments):-

धारा 4- दण्ड- अपराधी इस संहिता में इन दण्डों से दण्डित किया जा सकता है-
पहला- मृत्यु,
दूसरा- आजीवन कारावास
तीसरा- कारावास, जो दो प्रकार का है,
कठिन- कठोर श्रम के साथ
सादा
चौथा- सम्पत्ति की जब्ती
पांचवां – जुर्माना
छठा- सामुदायिक सेवा

धारा 5- दण्डादेश का लघुकरण– समुचित सरकार अपराधी की सहमति के बिना किसी दण्ड का भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 44 के अनुसार, किसी अन्य दण्ड में लघुकरण (कम) कर सकती है।
स्पष्टीकरण – इस धारा में समुचित सरकार में-

(क) उन मामलो में केन्द्रीय सरकार– जिनमें दण्ड का आदेश मृत्यु का दण्डादेश है या
ऐसे विषय से सम्बन्धित जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।

(ख) उन मामलों में उस राज्य की सरकार- जिसके अंदर अपराधी दण्डित हुआ है,
जहां दण्ड का आदेश ऐसे विषय से सम्बन्धित किसी कानून के खिलाफ अपराध के लिए है जिस पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।

धारा 6- दण्डावधियों की भिन– आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के समान गिना जाएगा।

साधारण शब्दो मे इस धारा के अनुसार जिसको भी आजीवन कारावास दिया गया है तो वह अवधि बीस साल की मानी जायेगी।

धारा 7- कारावास के कुछ मामलों में सम्पूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो सकेगा- इस धारा के अनुसार ऐसा मामला जिसमें अपराधी का अपराध दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय है वहाँ न्यायालय को यह वर्णन करना होगा कि वह सम्पूर्ण कारावास कठिन होगा या सादा होगा या कारावास का कुछ भाग कठिन या कुछ भाग सादा भी हो सकता है।

धारा 8- जुर्माने की रकम, जुर्माना आदि देने में चूक होने पर दायित्व-
(1) जहाँ वह राशि स्पष्ट नहीं की गई है कि कितना जुर्माना हो सकेगा, वहां जुमाने की रकम जिसके लिए अपराधी जिम्मेदार है वह असीमित है लेकिन अत्यधिक नहीं होगी।
साधारण शब्दों में ऐसा जुर्माना अपराध की प्रकृति को देखकर असीमित (unlimited) हो सकता है लेकिन अत्यधिक (excessive) नहीं होना चाहिए।

(2) किसी अपराध के हर मामले में- जो कारावास के साथ जुर्माने से भी दण्डनीय है, जिसमें अपराधी कारावास सहित या रहित जुमनि से दण्डित हुआ है;
जो कारावास या जुर्माने या केवल जुर्माने से दण्डनीय है, जिसमें अपराधी जुर्माने से दण्डित हुआ है,
वहां न्यायालय अपराधी को यह निदेश देगा कि जुर्माना देने में चूक होने पर वह कारावास भोगेगा, जो कारावास उस अन्य कारावास के अतिरिक्त होगा जिसके लिए वह दण्डित हुआ है।

(3) अगर अपराध कारावास के साथ जुमनि से भी दण्डनीय है, तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में चूक होने पर न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निदेश दे कारावास की उस अवधि की एक चौथाई से ज्यादा नहीं होगी जो उस अपराध के लिए अधिकतम तय है।
उदाहरण के लिए– अगर किसी व्यक्ति ने कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिए कारावास की अवधि एक साल है तो अगर वह जुमनि का भुगतान ना करें तो उसे उस अपराध के कारावास का एक चौथाई मिलेगा। 12 महीने के कारावास में यानी तीन महीने भी जोड़ दिया जाएंगे और उस व्यक्ति को कुल मिलाकर 15 महीने की सजा काटनी होगी जो मिली हुई सजा के अतिरिक्त होगी।

(4) वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में चूक होने के लिए या सामुदायिक सेवा में चूक के लिए देता है ऐसे किसी तरह का हो सकता है जिससे अपराधी को उस अपराध के लिए दण्डित किया जा सकता था।

(5) अगर अपराध जुमनि से या सामुदायिक सेवा से दण्डनीय है तो वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में चूक होने पर या सामुदायिक सेवा में चूक होने पर लगाता है, वह सादा होगा और वह अवधि, जिसके लिए न्यायालय अपराधी को कारावास का निदेश दें- –जब जुर्माने की रकम पांच हजार रुपए तक हो- दो महीने का कारावास।
जब जुर्माना की रकम दस हजार रुपए की हो- चार महीने का कारावास।
किसी अन्य दशा में- एक वर्ष का कारावास।

(6) जुर्माना देने में चूक होने पर कारावास तब समाप्त हो जाएगा जब वह जुर्माना या तो चुका दिया जाए या वसूल लिया जाए।
अगर जुर्माना देने में चूक होने पर कारावास की अवधि समाप्त होने से पहले जुर्माना चुका दिया जाए या वसूल कर लिया जाए कि देने में व्यतिक्रम होने कारावास की अवधि जो भोगी जा चुकी है वह जुमनि के तब तक न चुकाए गए भाग के आनुपातिक से कम ना हो तो समाप्त हो जाएगा।

उदाहरण– A एक हजार रुपए के जुमनि और उसे देने में चूक होने पर चार महीने के कारावास से दण्डित किया गया है। अगर कारावास के एक महीने के समाप्त होने से पहले जुर्मान के सात सौ पचास रुपए चुका दिए जाएं या वसूल कर लिए जाएं तो पहले महीने के समाप्त होते ही A छोड़ दिया जाएगा। अगर सात सौ पचास रुपए पहले महीने की समाप्ति पर जब A कारावास में है, चुका दिए जाएं या वसूल कर लिए जाएं तो A तुरन्त छोड़ दिया जाएगा।

(7) जुर्माना या उसका कोई भाग जो चुकाया ना गया हो, दण्डादेश दिए जाने के पश्च छह वर्ष के भीतर किसी भी समय और यदि अपराधी दण्डादेश के अधीन छह वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय है तो उस कालावधि के अवसान से पूर्व किसी भी समय, उद्‌गृहीत किया जा सकेगा और अपराधी की मृत्यु होना किसी भी सम्पत्ति को इस दायित्व से उन्मुक्त नहीं करती जो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके ऋणो के लिए वैध रूप से दायी है।

धारा 9- कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड- वहीं अपराधी को उससे गुरुतर दण्ड से दण्डित नहीं किया जाएगा, जो ऐसे अपराधों में से किसी भी एक के लिए विचारण न्यायालय उसे दे सकता है।

उदाहरण – A, Y पर लाठी से पचास हमले करता है। यह हो सकता है कि A ने मारपीट द्वारा की जानबूझकर चोट करने का अपराध किया है। अगर A हर हमले के लिए दण्डित होता तो वह हर हमले के लिए एक वर्ष के हिसाब से पचास वर्ष के लिए कारावासित किया जा सकता था। लेकिन वह मारपीट के लिए केवल एक ही दण्ड से दण्डनीय है।

उदाहरण– लेकिन अगर उस समय जब A, Y को पीट रहा है M बीच मे आ जाता है और A, M पर हमला करता है तो यहां M पर किया गया हमला उस कार्य का हिस्सा नहीं है, जिसके द्वारा A, Y को जानबूझकर उपहति करता है इसलिए A, Y को की गई उपहति के लिए एक दण्ड से और M पर किए गए हमले के लिए दूसरे दण्ड से दण्डनीय है।

धारा 10- कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिए दंड, जब यह संदेह है कि वह किस अपराध का दोषी है:- इस धारा में ऐसे मामलों के लिए दंड का उपबन्ध किया गया हैं जिसमे यह तो निश्चित रहता है कि अनेक अपराधों में से कोई एक अपराध किया गया है लेकिन इस बात पर सन्देह होता है कि अभियुक्त ने कौन सा अपराध किया है तो ऐसे मामले में अपराधी उस अपराध के लिए ही दंडित किया जाएगा जिसके लिए कम से कम दंड का उपबन्ध किया गया है।

उदाहरण – A को B टिकट दिखाता है। A अपने टिकट से उसके टिकट को बदल लेता है। यह तय नहीं है कि यह चोरी है, आपराधिक दुर्विनियोग, आपराधिक न्यासभंग या छल है। A इस मामले में अपराधिक दुर्विनियोग का दोषी ठहराया जाएगा। क्योंकि नफरतों में से आपराधिक दुर्विनियोग के लिए सबसे कम दंड का प्रावधान है।

धारा 11- एकान्त परिरोध- जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए कठोर कारावास से दंडित किया जाता है तो न्यायालय कुल मिलाकर तीन महीने से ज्यादा के लिये एकांत परिरोध में रखने का आदेश नहीं दे सकता है-
अगर कारावास छह महीने से ज्यादा ना हो- एक महीने का।
अगर कारावास छह महीने से ज्यादा और एक साल तक हो- दो महीने का।
अगर कारावास एक साल से ज्यादा हो- तीन महीने का।

एकांत परिरोध का अर्थ- इसका अर्थ है कि कैदी को बाहरी संसार से एकदम अलग रखना ताकि उसे जेल के बाहर होने वाली किसी घटना का ज्ञान ना हो सके।
केस- नयन सुक मेथर (1869)- इस मामले में न्यायालय ने कहा कि एकांत परिरोध इस उद्देश्य से थोपा जाता है कि एकाकीपन की भावना उस पर अपना प्रभाव डालकर उसमे सुधार की भावना को जगा सके लेकिन कारावास की सम्पूर्ण थोपा नहीं जा सकता। सम्पूर्ण अवधि के लिए इसे थोपा नहीं जा सकता
केस- मुन्नूस्वामी (1948)- इस मामले में न्यायालय ने कहा कि एकांत परिरोध का प्रयोग केवल कठोरता के अत्यधिक आपवादिक मामलों में ही किया जाना चाहिए।

धारा 12- एकान्त परिरोध की अवधि:- एकांत परिरोध एक बार मे 14 दिनों से ज्यादा का नहीं होगा और जब दिया गया कारावास तीन महीने से ज्यादा का हो तब दिए गए सम्पूर्ण कारावास के किसी एक मास में एकांत परिरोध सात दिन से ज्यादा का नहीं होगा।

केस- नयन सुक मेथर (1869)- इस मामले में कहा गया कि यह धारा दंड के निष्पादन में एकांत परिरोध की सीमा तय करती है। इसके अलावा यह भी तय करती है कि एकांत परिरोध कुछ अंतराल पर देना चाहिए क्योंकि अगर इसे ज्यादा समय तक जारी रखा जाएगा तो मानसिक विषिप्त होने का डर रहता है। अगर कारावास की सम्पूर्ण अवधि के लिए एकांत परिरोध दिया जाता है तो वह अवैध होगा हालांकि यह चौदह दिन से चौदह दिन से ज्यादा का नहीं होगा।

धारा 13- पूर्वदोषसिद्धि के बाद कुछ अपराधों के लिए वर्धित दण्ड- जो व्यक्ति भारत में किसी न्यायालय द्वारा इस संहिता के अध्याय 10 या अध्याय 17 में तीन वर्ष या उससे ज्यादा के लिए दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहराए जाने के बाद उन अध्याय में उतनी ही अवधि के लिए वैसे ही कारावास से डंडों के विषय में दण्डों के विषय में दण्डनीय किसी अपराध का दोषी है तो वह हर ऐसे बाद वाले अपराध के लिए आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी दण्डनीय होगा

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