फैक्टम वैलेट का सिद्धांत (Doctrine of Factum Valet):

फेक्टम वैलेट एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है- कार्य वैध है। यह एक कानूनी सिद्धांत है जो किसी अधिनियम की वैधता और बाध्यकारी प्रकृति को पहचानता है इसके निष्पादन की प्रक्रिया में किसी भी दोष या अनियमितता के बावजूद। फैक्टम वैलेट अक्सर उन मामलों में लागू किया जाता है जहां प्रक्रियात्मक या तकनीकी अनियमितताएं होती हैं, लेकिन वैधता के लिए आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा किया गया है।

फैक्टम वैलेट की उत्पत्ति- इस सिद्धांत की जड़ें रोमन कानून में है विशेष रूप से रोमन कहावत फैक्टम वैलेट क्लॉड फिएरी डेबिट में जिसका अर्थ है “जो किया जाना चाहिए वह पूरा होने पर वैध हो जाता है।”

यह कहावत रोमन कानूनी सिद्धांत को दर्शाती है कि एक बार जब कोई कार्य कानून की आवश्यकताओं के अनुसार रा हो जाता है, तो इसे वैध और बाध्यकारी माना जाता है, भले ही प्रक्रिया में प्रारंभिक दोष या अनियमितताएं हों।

सिद्धांत किसी अधिनियम की वैधता निर्धारित करने में कानूनी आवश्यकताओं के पूरा होने और पालन के महत्व पर जोर देता है।

वैदिक और स्मृतिकाल के दौरान :- यह स्पष्ट मान्यता थी कि विधि राजा की भी राजा है।” विधि जो ईश्वर द्वारा बनाई जाती है. राजा से भी सर्वोच्च है। कोई भी व्यक्ति इस विधि (धर्म) के विपरीत कार्य नहीं कर सकता। धर्म के विपरीत कार्य करने वाले महापापी माने गये हैं। नरक (भविष्य में कष्ट) का भय इसके लिए शास्ति था। स्मृति काल के बाद का समय पूरी तरह धर्म पर ही आधारित नहीं रहा और प्रचलित रूढ़ि व प्रथा ने भी मान्य विधि में स्थान प्राप्त किया। जीमूतवाहन जिसने दायभाग भाष्य की रचना की है, का मत है कि शास्त्रों में लिखा हुआ कोई भी पाठ या व्यवस्था बदली जा सकती है।

जो तथ्य घट चुका है उसे शास्त्रो के सौ पाठ भी नहीं बदल सकते। जेमिनी ने रोमन विधि के सिद्धांत को आधार मानते हुए कहा कि जो नहीं करना चाहिये यदि कर लिया गया तो वह वैध है। यही फैक्टम वेलेट का सिद्धांत है। यह सिद्धांत शास्त्रिक विधि पर पूरी तरह से लागू नहीं था। सभी विधि के विपरीत कार्य इस आधार पर मान्य नहीं हो सकते कि ऐसे कार्य वास्तव में घटित हो चुके हैं। इस सिद्धांत को जीमूतवाहन और जैमिनी ने मान्यता इसलिए दी है कि प्राचीन विधि में सभी विधि और कर्तव्य आदेशात्मक नहीं थे।

विधिशास्त्रियो के दो प्रकार की थी– अनुसार शास्त्रों में प्रतिपादित विधि :-

1) आदेशात्मक

2) निर्देशात्मक

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