
तैयारी और प्रयत्न के बीच अंतर के स्पष्ट करने के लिए अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किये गए हैं जो निम्न है-
1) सन्निकटता का सिद्धांत (Proximity Theory)- इस सिद्धांत के अनुसार अगर अपराधी लगभग सभी महत्वपूर्ण कार्यवाहियां पूरी कर चुका है लेकिन जिस परिणाम की आकांक्षा थी और जो अपराध का जरूरी तत्व है वह परिणाम प्राप्त नहीं होता क्योंकि अभियुक्त के कौशल की कमी या अन्य प्रभावी कारणो से पूरा नहीं हो पाता तो वह प्रयत्न होगा।
उदाहरण – A, B पर गोली चलाता है लेकिन गोली निशाने पर नहीं चलती बंदूक खाली है।
केस- आर बनाम टेलर (1895)- इस मामले में एक व्यक्ति एक मकान के पीछे घास के ढेर में आगे लगाते हुए पकड़ा जाता है। वह आग लगाने के प्रयत्न का दोषी है।
केस- आर बनाम रोविंसन (1910)- इस मामले में एक जौहरी ने बीमें की रकम कपटपूर्वक प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने जेवरातो को छुपा दिया और अपने आपको कुर्सी के नीचे बांधकर मदद के लिए शोर मचाने लगा। सड़क से होकर गुजरने वाली पुलिस ने शोर सुनकर मकान के अंदर प्रवेश किया। जौहरी ने पुलिस को बताया कि उसे बांधकर उसके जेवरात लूट लिये गये है। तिजोरी भी खुली पड़ी हुई थी और उसमें से जेवरात गायब थे। जांच के बाद यह पता चला कि जौहरी ने यह झूठा बहाना बीमा कंपनी से पैसे लेने के उद्देश्य से किया था। जोहरी ने खुद इस बात को स्वीकार किया था। न्यायालय ने कहा कि झूठ बोलकर धन प्राप्त करने के प्रयत्न के लिए जोहरी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उसका कार्य केवल अपराध की तैयारी था। न्यायालय में एक जौहरी को कपट के प्रयास का दोषी नहीं ठहराया।
2) असम्भवता का सिद्धांत (Impossibility Theory)- अगर व्यक्ति किसी कार्य को करने का प्रयत्न करता है जिसे करना असंभव था तो वह अपराध नहीं होगा।
केस- आर बनाम मैक्फरसन (1857)- इस मामले में A को एक बिल्डिंग में सेंध लगाकर घुसने और चोरी का प्रयत्न करने का दोषी नहीं माना क्योंकि उस बिल्डिंग में कोई सामान नहीं था।
उदाहरण – A लकड़ी के ठूठ को समझकर हत्या करने के आशय से उस पर कुल्हाड़ी से वार करता है तो A, B की हत्या के प्रयल का दोषी नहीं होगा।
केस- क्वीन बनाम कॉलिन्सन– जेब में हाथ पैसे चुराने के लिए डालना जबकि जेब खाली है तो वह चोरी के प्रयत्न का नहीं होगा।
अमेरिका के न्यायमूर्ति बटलर ने इस नियम की आलोचना की कि एक व्यक्ति पुलिस के सामने पुलिस के बैरक में जाता है और उनके बक्सों की तलाशी लेता है उसे वहां कुछ नहीं मिलता तब भी उनका ना दंडित करना, प्रयल का दोषी ना होना एक अनोखी बात है।
केस- आर बनाम रिंग (1892)- इस मामले में कीन बनाम कॉलिन्सन के मामले में दिए गए निर्णय को उलट दिया गया इस मामले में अभियुक्त ने एक महिला के झोले में हाथ डाला उसे कुछ नहीं मिला। न्यायालय ने उसे चोरी के प्रयत्न का दोषी ठहराया।
3) वस्तु का सिद्धांत (Object Theory)- वस्तु के विषय में भ्रम होना जो प्रयत्न होगा और जिनमें वस्तु का अभाव रहता है उसमे प्रयत्न नहीं होगा। उदाहरण- अगर कोई जेबकतरा खाली जेब में हाथ डालता है तो ऐसा भ्रम के अधीन माना जाएगा।
4) कार्य की और अग्रसर होने का सिद्धांत (On the Job Theory)- एक व्यक्ति अपने कार्य की ओर आगे बढ़ जाता है तो वह प्रयास का दोषी है।
उदाहरण – A रात में B के घर में जाता है और उसे मारने के आशय से अंधेरे कमरे में बिस्तर पर गोली चलाता है जिस पर वह हमेशा सोता था परंतु उस दिन 8 वहां नहीं था। निशाना बिल्कुल ठीक था लेकिन बिस्तर खाली था इसलिए कोई क्षति नहीं हुई। A प्रयत्न का दोषी है।
केस- आर बनाम ऑस्वर्न (1920)- इस मामले में अभियुक्त ने कुछ गोलियां महिला को गर्भपात कराने के लिए भेजी। महिला ने गोली खाई लेकिन वे अहानिकर साबित हुई। न्यायालय ने उसे प्रयत्न का दोषी नहीं ठहराया।
केस- आर बनाम दयालबोरी (1869)- इस मामले में अभियुक्त एक मकान के निकट जलता हुआ काठ का कोयला कपड़े में लपेटे हुए पकड़ा गया। इस प्रकार से उस गांव में कई आगजनी की घटनाएं हो रही थी। अभियुक्त को आग द्वारा रिष्टि के प्रयत्न का दोषी ठहराया।
5) विचार बदल देने की सम्भावना:- अभियुक्त का वह कार्य कि अभियुक्त स्वेच्छा से आकांक्षित प्रयत्न से अपने को दूर रखेगा तो वह तैयारी होगी।
केस- रमक्का बनाम सम्राट :-एक स्त्री यह कहते हुए कुएं की तरफ भागी कि वह मरने जा रही है कुएँ के पास उसे कुछ लोगों ने बचा लिया। न्यायालय ने कहा कि कुएँ में कूदने से पहले वह विचार बदल सकती थी इसलिए प्रयत्न की दोषी नहीं है।
6) उपान्तिम कार्य (Penultimate act)- जब अभियुक्त अपनी तरफ से सभी कार्य कर चुका हो उसके पास कुछ ना बचे तो यह प्रयत्न है।
केस- अभ्यानंद मिश्र बनाम बिहार राज्य (1961)- इस मामले में अभियुक्त ने व्यक्तिगत परीक्षा की हैसियत से अंग्रेजी विषय में एम ए की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति के लिए पटना विश्वविद्यालय में प्रार्थना पत्र दिया उसने अपने प्रार्थना पत्र में अपने आपको स्नातक और एक विद्यालय में अध्यापक के रूप में कार्यरत बताया था और अपने प्रार्थना पत्र में विद्यालय के प्रधानाचार्य और जिला विद्यालय में अनुभव का प्रमाणपत्र भी लगाया था। परीक्षा में बैठने की अनुमति उसे मिल चुकी थी लेकिन बाद में यह पाया गया कि वह ना तो स्नातक था और ना ही अध्यापक था इसलिए उसकी अनुमति वापस ले ली गई और अभियुक्त को छल के प्रयत्न का दोषी ठहराया गया।
उच्चतम न्यायालय ने कहा की तैयारी तो उसे समय ही पूरी हो गई थी जब अभियुक्त ने विश्वविद्यालय में जमा करने के लिए आवेदन पत्र तैयार कर लिया था और जिस पल उसने इसे दिया था प्रयत्न का अपराध पूरा हो गया था क्योंकि प्रयत्न उस समय पूरा हो जाता है जब-
1) वह अपराध करने का आशय रखता हो, और
2) तैयारी कर लेने के बाद अपराध करने के आशय से उसे करने के लिए कोई कार्य करता है। करता है।
इस तरह के कार्य उसे अपराध को करने की दिशा में उपांतिम होना जरूरी नहीं है बल्कि उसे अपराध के दौरान किया गया होना जरूरी है।
केस- सुधीर कुमार मुखर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1973)- इस मामले में प्रश्न यह था कि क्या अभियुक्त के द्वारा बिना माल लिए ही उसकी प्राप्ति के सबूत के रूप में चालान पर हस्ताक्षर करना अपराध का प्रयत्न होगा या नहीं। बचाव पक्ष की तरफ से तर्क दिया गया था कि यह केवल तैयारी थी क्योंकि छल के अपराध के लिए चालान के ऊपर स्टांप लगाना और दोबारा अभियुक्त द्वारा उस पर हस्ताक्षर करना जरूरी होगा जबकि उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त प्रयास का दोषी है।
केस- महाराष्ट्र राज्य बनाम मोहम्मद याकूब (1980)- इस मामले में तीन व्यक्ति भारत से बाहर चांदी की तस्करी की कोशिश करने के लिए दोषसिद्ध किए गए। एक सूचना मिलने पर वे तीनों पकड़े गए थे और समुद्र तट के पास पाए गए थे। तलाशी के बाद चांदी के बोरे ट्रक में छुपाए गए थे। अभियुक्तों को भारत से बाहर चांदी की तस्करी करने के पर्यटन का दोषी ठहराया गया। न्यायमूर्ति सरकारिया ने कहा कि प्रयत्न की परिभाषा करना कठिन है।
तैयारी और प्रयत्न में अंतर Difference between Preparation and Attempt)
1) तैयारी किसी अवैध कार्य को करने से पहले सभी जरूरी साधनों और वस्तुओं को इकट्ठा करने से संबंधित है जबकि प्रयल योजना के अनुसार तैयारी के बाद किया जाने वाला कार्य है।
2) तैयारी केवल कुछ मामलों में दंडनीय है जबकि प्रयत्न के लिए दण्ड अवश्य रूप में मिलता है।
3) तैयारी अपराध का दूसरा चरण है जबकि प्रयत्न अपराध का तीसरा चरण है।
4) तैयारी में तथ्यों का ज्ञान केवल वही व्यक्ति रखता है जो अपराध का इरादा रखता है जबकि प्रयत्न पूरा होते ही वह प्रकट हो जाता है।
5) अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपराध करने का विचार छोड़ दे तो वह प्रयास का दोषी नहीं होगा जबकि प्रयास एक अपराध की श्रेणी में आता है।
6) तैयारी के चरण में व्यक्ति का अपना इरादा बदलने और वह चाहे तो अपराध से पीछे हट सकता है जबकि प्रयत्न में उसके पास यह अवसर नहीं होता और व्यक्ति को आरोपी कहा जाएगा।
7) अपराध की तैयारी में दूसरे व्यक्ति को हानि होने की संभावना नहीं होती जबकि प्रयत्न में दूसरे व्यक्ति को हानि होने की बहुत ज्यादा सम्भावना होती है।
8) तैयारी के मामले में साबित करना बहुत मुश्किल होता है जबकि प्रयत्न के मामले में साबित करना आसान होता है।
9) तैयारी के लिए संहिता में कोई अध्याय नही दिया गया जबकि प्रयत्न के लिए धारा 62 में स्पष्ट प्रावधान किया गया है।