मृत्युदण्ड (Capital Punishment)
भारतीय न्याय संहिता की धारा 4 के अनुसार छह प्रकार के दण्ड दिए गए है-

मृत्युदंड।
आजीवन कारावास।
कारावास- सादा या कठोर ।
संपत्ति की जब्ती।
जुर्माना।
सामुदायिक सेवा।
मृत्युदंड को अंग्रेजी में कैपिटल पनिशमेंट (Capital Punishment) कहते हैं। मृत्युदंड विश्व में अपराधी को दी जाने वाली सबसे बड़ी सजा होती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति दी गई है जिसके तहत राष्ट्रपति को कुछ परिस्थितियों में मृत्युदंड पर रोक लगाने का अधिकार दिया गया है। इसी तरह से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 में राज्यपाल को कुछ परिस्थितियों में मृत्युदंड पर रोक लगाने का अधिकार दिया गया है। इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार अगर सत्र न्यायालय किसी व्यक्ति को मृत्युदंड देता है तो उसमें तुरंत की पुष्टि संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के द्वारा की जाएगी। इसके बाद उसका निष्पादन किया जाएगा।
गंभीर अपराधों में मृत्युदंड की व्यवस्था विश्व के लगभग सभी देशों में प्रचलित थी लेकिन सभ्यता में विकास के साथ-साथ अपराधशास्त्र के सुधारात्मक सिद्धांत में विधिशास्त्रियों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि अगर हम किसी को जीवन नहीं दे सकते तो हमे उसका जीवन लेने का अधिकार भी नहीं है। केवल ईश्वर ही जीवनदाता है और उसे ही प्राण लेने का अधिकार है। लेकिन कुछ विधिशास्त्रियों का यह मत है कि आजीवन कारावास की अपेक्षा मृत्युदंड ज्यादा प्रभावकारी है यह मनुष्य के अंदर डर दिखाता है। प्रतिरोधात्मक सिद्धांत (Deterrent Theory) को मानने वाले इसे अच्छा बताते हैं। लेकिन विश्व के कई देशों ने इसे समाप्त कर दिया है, जिनमे इंग्लैंड भी शामिल हैं।
मृत्युदंड की प्रक्रिया-
1) एक गंभीर अपराध करना।
2) उसके बाद पुलिस के द्वारा जांच किया जाना।
3) आरोपी की गिरफ्तारी के बाद उस पर सत्र न्यायालय में मुकदमा चलाया जाता है।
4) इसके बाद दोषी व्यक्ति द्वारा उच्च न्यायालय में अपील की जाती है।
5) उच्च न्यायालय से अपील खारिज होने के बाद वह उच्चतम न्यायालय में अपील करता है।
6) अगर उच्चतम न्यायालय भी अपील खारिज कर देता है तो वह राष्ट्रपति से क्षमा की याचना करता है।
7) जब राष्ट्रपति के द्वारा भी उसकी याचिका को खारिज कर दिया जाए तो मृत्युदंड का निष्पादन किया जाता है।
मृत्युदंड समाप्त करने के पक्ष में तर्क- मुख्य रूप में इन आधारों पर मृत्युदंड का विरोध किया जाता है जो ये है-
1) मृत्युदंड के अलग-अलग तरीके हैं उनमें से कोई भी ऐसा नहीं है जो दर्द और यातना से पूरी तरह से मुक्त हो।
2) शारीरिक कष्ट से भी ज्यादा कष्ट मानसिक यंत्रणा है जिसका अनुभव अपराधी मृत्युदंड सुनाए जाने के बाद और फांसी पर लटकाने बीच के समय में करता है।
3) अपराधी के परिवार के सदस्यों द्वारा उत्पीड़न का अनुभव एक दूसरा भयकारी तथ्य है और उनके मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव पड़ता है जो कभी नहीं मिटता।
4) यूरोप और अमेरिका के कई देशों में मृत्युदण्ड को समाप्त कर दिया जो इस बात का सबूत है कि अपराध को अमानवीय दण्ड दिए बिना भी नियंत्रित किया जा सकता है।
5) मृत्युदंड ऐसे अपराधियों पर जो मनोवैज्ञानिक दबाव या आवेश में अपराध करते हैं या जो विकृतचित या पेशेवर अपराधी है, उन पर मृत्युदण्ड एक सा प्रभाव नहीं डालता।
6) हमारी वर्तमान पुलिस और गुप्तचर विभाग और न्याय प्रणाली ऐसी है कि हत्या के आधे से ज्यादा अपराधी पकड़े नहीं जाते और जो पकड़े भी जाते हैं जिनका विचारण भी होता है उनमें से काफी बड़ी संख्या में छूट जाते हैं। उनमें से कुछ पर मृत्युदंड प्रभावहीन है।
7) कुछ लोगों का सुझाव है अगर हम मृत्युदंड का अपराध निवारक के रूप में प्रभावकारी बनाना चाहते हैं तो मृत्युदंड को बड़ी क्रूर तरीके से जनता के सामने देना चाहिए लेकिन इतिहास गवाह है कि ऐसा करना कभी प्रभावकारी नहीं रहा।
केस- अटॉर्नी जनरल ऑफ़ इंडिया बनाम लक्ष्मी देवी (1986)- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनता के सामने या सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है भले ही किसी भी जेल में इस तरह की फांसी अनुच्छेद 21 का प्रावधान हो।
केस- दीना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य- इस मामले में न्यायालय ने कहा कि मृत्युदण्ड में फांसी का दंड देना सबसे सरल तरीका बताया।
मृत्युदंड के पक्ष में तर्क- कुछ विधिशास्त्री मृत्युदंड को बनाए रखने के पक्ष में ये तर्क देते है-
1) मृत्युदंड देने से जनता में डर व्याप्त होता है वह दोबारा ऐसे अपराध को नहीं करता।
2) ऐसा व्यक्ति जो सुधर नहीं सकता उसे मृत्युदंड देना ही बेहतर है।
3) अपराधी को जेल में रखकर पालन पोषण करने की बजाए मृत्युदंड ज्यादा सही साबित होता है।
4) समाज में अपराधियों की संख्या में कमी होती है।
भारत में मृत्युदंड की व्यवस्था– भारत में कुछ अपराधों के लिए मृत्युदंड की व्यवस्था की गई है। जैसे- धारा 147, 160, 230, 103,104, 107,109, 140 (2), 66, 310 (3)
1955 से पहले सामान्य नियम था कि मृत्युदंड दिया जाए लेकिन 1955 के बाद मृत्युदंड को कम कर दिया गया। सन 1962 में मृत्युदंड को समाप्त करने के लिए विधि आयोग को सौपा गया। विधि आयोग ने अपनी 35वीं रिपोर्ट में मृत्युदंड को समाप्त करने के पक्ष में रिपोर्ट दी। रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि “भारत में व्याप्त परिस्थितियों जीवन स्तर नैतिकता या शिक्षा के स्तर जनसंख्या को देखते हुए मृत्युदंड को समाप्त करने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता”। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में कहा गया कि “मृत्युदंड देते समय विशेष कारण लिखना जरूरी है”।
केस- बचनसिंह बनाम पंजाब राज्य (1980)- इस मामले में न्यायालय ने कहा कि विरल से विरलतम (rare to rarest cases) मामलों में ही मृत्युदंड देना चाहिए।
मृत्युदंड को समाप्त करने के बारे में ‘उच्चतम न्यायालय ने कई निर्णय दिए जिनमें प्रमुख न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने निर्णय दिये।
केस- जगमोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1973)- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मृत्युदंड मौलिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध है। जीवित रहने का अधिकार संविधान में दिया गया है और यह उसका उल्लंघन है।
केस- रामेश्वर बनाम उत्तरप्रदेश राज्य (1973)- न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने मृत्युदंड को समाप्त करने में कुछ विचार रखे और उन्होंने कहा कि “क्योंकि हर महात्मा का एक अतीत होता है और हर पापी का एक भविष्य होता है। इसलिए अपराधिक कार्यों से युक्त व्यक्ति को समाप्त ना करो बल्कि उस प्रकिया को दूर करो जिससे वह अपराधिक कार्य करता है”।
केस- राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तरप्रदेश राज्य (1979)- इस मामले में भी मृत्युदंड को समाप्त करने के लिए तर्क दिए गए। अपराधी को आजीवन कारावास दिया गया था। उसने बाहर आते ही उस गवाह को मार दिया जिसने उस मामले में गवाही दी थी। न्यायमूर्ति कृष्णअय्यर ने कहा कि इस मामले में जेल असफल हुई है। वह इतने दिन तक उसे रखने के बाद भी सुधार नहीं पाई। सफल हुई है
केस- माछी सिंह बनाम पंजाब राज्य (1983)- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने इन मामलों में मृत्युदंड देने को सही ठहराया:-
1) हत्या जहां पूर्व नियोजन से और क्रूरतापूर्वक की गई हो।
2) जहाँ हत्या आर्थिक फायदे के लिए की गई हो।
3) जहाँ भारतीय सेना या पुलिस या लोकसेवक की उन्हें सहायता पहुंचाने वाले की हत्या की गई हो।
4) जहाँ टुकड़े-टुकड़े करके मारा हो या आग लगाकर हत्या की हो।
5) जहाँ हत्या मातृभूमि से गद्दारी करके की गई हो।
6) किसी शिशु, महिला, वृद्ध या जनप्रिय नेता की हत्या की हो।