
उपधारणा (Presumption)
उपधारणा का अर्थ (Meaning of presumption) – उपधारणा एक तथ्य का अनुमान है जो किन्ही अन्य जाने हुए या साबित किए हुए तथ्यों से निकाला जाता है। यह विधि का एक नियम है जो न्यायालय को एक तथ्य से कोई अनुमान लगाने का अधिकार देती है।
उदाहरण– हम देखते है कि किसी जगह पर धुआँ निकल रहा है तो तुरन्त यही अनुमान लगा लेते है कि वहाँ आग लगी होती।
उपधारणा के प्रकार (Types of presumption)- यह दो प्रकार की होती है-
1) तथ्य की उपधारणा (Presumption of fact)- तथ्य की उपधारणा से मतलब ऐसे अनुमान से है जो प्राकृतिक रूप से प्रकृति के क्रम के निरीक्षण और मानवीय मस्तिष्क की रचना से निकाली जाती है।
लैटिन भाषा में इसे Pre Jenitio (प्री जीनिटीयो) hominus कहते हैं। यह बिना किसी कानून की मदद के निकाली जाती है। यह उपधारणा न्यायालय को किसी तथ्य के अस्तित्व का उपधारण करने का विवेकाधिकार देती है और यह अन्य तथ्य से खंडित भी की जा सकती है।
उदाहरण– अगर किसी व्यक्ति के पास चोरी के तुरंत बाद कोई सामान पाया जाए तो यह अनुमान लगा जाएगा कि ‘या तो वह चोर है या उसने चोरी का सामान जानते हुये खरीदा है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में तथ्य की उपधारणा से संबंधित धाराएं है-
✓धारा 88– विदेशी न्यायिक अभिलेखो की प्रमाणित प्रतियाँ।
✓धारा 89– पुस्तकों, मानचित्रो और चाटों के विषय में उपधारणा।
✓धारा 90– इलेक्ट्रॉनिक संदेशो की उपधारणा
✓धारा 92- तीस वर्ष पुराने दस्तावेजो की उपधारणा।
✓धारा 93- पांच वर्ष पुराने इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख की उपधारणा।
✓धारा 117– विवाह के सात वर्ष के अंदर आत्महत्या
✓धारा 119– न्यायालय कुछ तथ्यों के अस्तित्व की उपधारणा कर सकेगा।
(2) विधि की उपधारणा (Presumption Of Law)- विधि की उपधारणाओं में न्यायालय का विवेक नहीं होता। न्यायालय तथ्य को साबित के तौर पर मानने को बाध्य होता है। यह उपधारणा अखंडनीय होती है। जब तक इसके खिलाफ कोई बात साबित ना कर दी जाए। यह खंडनीय नहीं हो सकती।
यह दो प्रकार की होती है-
(i) उपधारणा करेगा।
(ii) निश्चायक सबूत।
भा० साक्ष्य अधिनियम में यह उपधारणा इनमें दी गयी है-
✓धारा 78- प्रमाणित प्रतियों के असली होने की उपधारणा
✓धारा 79– साक्ष्य के अभिलेख के तौर पर की गई दस्तावेजों के बारे में उपधारणा
✓धारा 80- राजपत्रों, समाचारपत्रों, पार्लियामेन्ट के प्राइवेट एक्टो और दस्तावेजो के बारे में उपधारणा
✓धारा 81- इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में राजपत्रों की उपधारणा।
✓धारा 82- सरकार के प्राधिकार से बनाए गए मानचित्र, रेखाकों की उपधारणा
✓धारा 83- विधि संग्रह और विनिश्चयों की रिपोर्ट के बारे में उपधारणा
✓धारा 84- मुख्तारनामें के बारे में उपधारणा
✓धारा 85- इलेक्ट्रॉनिक करार की उपधारणा
✓धारा 86– इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की उपधारणा
✓धारा 87- इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र की उपधारणा
✓धारा 88- विदेशी न्यायिक अभिलेख की उपधारणा
✓धारा 91- पेश ना की गई दस्तावेजो के सम्पर्क निष्पादन के बारे में
✓धारा 107-115 तक
✓धारा 118- दहेज मृत्यु की उपधारणा।
निश्चायक सबूत– ये ऐसे अनुमान है जो निश्चायक, निर्णायक और निर्विवाद के समान है, ये कानून के वे निर्विवाद नियम होते है जो किसी भी विपरीत साक्ष्य द्वारा सिद्ध नहीं किए जा सकते। ये अखंडनीय उपधारणा है।
उदाहरण– भा० दंड संहिता की धारा 20 में सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा किया गया कोई भी कार्य अपराध नहीं है।
तथ्य और विधि की उपधारणा में अंतर-
1) अर्थ– तथ्य की उपधारणा प्राकृतिक नियमों, मानवीय अनुभवों तथा प्रचलित प्रथाओं के आधार पर निकाली जाती है जबकि विधि की उपधारणा न्यायिक नियमों के स्तर पर प्रतिष्ठित है और विधि का अंग बन गई है।
2) आधार – तथ्य की उपधारणा का आधार तर्क है जबकि विधि की उपधारणा का आधार विधि के प्रावधान है।
3) खंडनीय– तथ्य की उपधारणा खण्डनीय होती है और स्पष्ट करने पर खंडित्त हो जाती है। जबकि विधि की उपधारणा खंडन के अभाव में निश्चायक होती है।
4) उपेक्षा– तथ्य की उपधारणा चाहे कितनी सशक्त हो न्यायालय इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता है जबकि विधि की उपधारणा की न्यायालय इसकी उपेक्षा नहीं सकता आज्ञापक है।
5) स्थिति– तथ्य की उपधारणा की स्थिति अनिश्चित और परिवर्तनशील होती है जबकि विधि की उपधारणा की स्थिति निश्चित और एकरूप होती है।
6) धाराएं– तथ्य की उपधारणा भारतीय साक्ष्य अधिनियम में धारा 88, 89, 90,92,93,117 और 119 में वर्णित है जबकि विधि की उपधारणा अधिनियम की धारा 78, 79, 80, 81, 82, 83, 84,85,86,87,88, 91, 107-115, 118 में वर्णित है।