भागीदारो के द्वारा लाभ में अंश प्राप्त करना और भागीदारी को चलाना
(Share in a profit of business)
केस- कॉक्स बनाम हिकमैन (1860)- इस मामले के निर्णय से पहले केवल लाभ प्राप्त करने से ही भागीदारी स्थापित मान ली जाती थी लेकिन इस मामले में हाउस आफ लॉर्ड ने यह सिद्धांत दिया कि भागीदारी के लिए लाभ प्राप्त करने के साथ भागीदारो और उसके द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य द्वारा व्यापार का चलाया जाना भी जरूरी है। अगर दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई कारोबार चलाने का करार करते हैं और करार का उद्देश्य लाभ को आपस में बांटना है तो भी यह संभव हो सकता है कि भागीदारी अस्तित्व में ना आए यदि पारस्परिक एजेंसी (वास्तविक सम्बन्ध) ना हो।
केस- कॉक्स बनाम हिकमैन (1860)- इस मामले में लॉर्ड क्रेनवर्थ ने कहा कि जहां दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी साधारण कारोबार में भागीदार होते हैं तो उनमें से प्रत्येक को कारोबार के अनुक्रम में की गई संविदा द्वारा अन्य भागीदारों को बाध्य करने का प्राधिकार होता है। उन्होंने यह भी कहा कि हर भागीदार भागीदारी का एजेंट होता है और उसकी स्थिति उन नियमों द्वारा नियंत्रित होती है जिन नियमों द्वारा एजेंट की स्थिति नियंत्रित होती है। एक भागीदार मालिक और एजेंट दोनों होता है।
इस मामले के तथ्य – दो व्यक्तियो ने आर्थिक संकट होने पर ऋण लिया जिसे ना चुका पाने पर लेनदारों के पक्ष में न्यास विलेख बनाया। लेनदारों में कॉक्स भी शामिल था। विलेख में सम्पत्ति न्यासियों को दे दी गई थी और उन्हें कारोबार चलाने के लिए लेनदारों के बीच लाभ को बांटने के लिए शक्ति भी दे दी गई थी। यह विलेख दोनों भागीदारों को कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए थी। कर्ज़ के भुगतान के बाद संपत्ति दोनों व्यक्तियों को वापस मिलने थी। कॉक्स ने न्यासी के रूप में कभी कार्य नहीं किया और अवकाश ले लिया अन्य न्यासी जो कारोबार चला रहे थे हिकमैन के कर्जदार हो गए। हिकमैन ने न्यासियो के खिलाफ वाद दायर किया और धन की मांग की। यहां यह मुख्य बात है कि न्यासी इस दशा में जिम्मेदार हो सकते थे अगर वह भागीदार होते। न्यायालय ने कहा न्यासी भागीदारी नहीं थे क्योंकि भागीदारी के लिए यह जरूरी है कि सभी भागीदार फर्म में लाभ प्राप्त करने के साथ ही साथ फर्म के कारोबार को या तो खुद चलाते हो या सब की ओर से कोई एक चलाता हो। फर्म के कारोबार का स्वयं उनकी ओर से चलाया जाना जरूरी है। इस मामले में लॉर्ड क्रेनवर्थ ने भागीदारी के लाभ में भाग लेना भागीदारी का प्रथमदृष्ट्या साक्ष्य बताया लेकिन निर्णायक प्रशिक्षण पारस्परिक एजेंसी है धारा 18 में भी यही बात कही गई है कि भागीदार फर्म का अभिकर्ता होता है।
उदाहरण – A अपने नाम से माल उतारने और चढाने का व्यापार एक लिमिटेड कंपनी के लिए करता है। A ने इस कार्य के लिए B को प्रबंधक नियुक्त किया। उनमें परस्पर तय हुआ कि लाभ में से 8 को 75 पैसे का हिस्सा दिया जाएगा और A 25 पैसे का हिस्सा प्राप्त करेगा, लेकिन A किसी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यहां इस उदाहरण में A और B के बीच करार है जो कारोबार चलाने के लिए है और लाभ को आपस में बांटना है लेकिन वास्तविक सम्बन्ध नहीं है। इसीलिए A और B भागीदार नहीं है। A का नुकसान के लिए जिम्मेदार ना होना यह साबित करता है कि A, B का अभिकर्ता नहीं है क्योंकि अपने कार्यों के द्वारा A को बाध्य नहीं कर सकता इसलिए A और B के बीच भागीदारी नहीं है।