Abetment under Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 – Section 45-60 Explained?

दुष्प्रेरण (Abetment)

Types of Abetment

भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 45-60 तक दुष्प्रेरण के बारे में प्रावधान किया गया है।

धारा 45किसी बात का दुष्प्रेरण– वह व्यक्ति दुष्प्रेरण करता है जो-

पहला– किसी बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है।

दूसरा– किसी बात को करने के लिए किसी षड्यंत्र में एक या ज्यादा व्यक्तियों के साथ शामिल होता है।

तीसरा– किसी बात को करने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है।

स्पष्टीकरण 1- कोई व्यक्ति जो जानबूझकर मिथ्या निरूपण द्वारा या किसी तात्विक तथ्य जिसे प्रकट करने के लिए वह आबद्ध है जानबूझकर छिपाने द्वारा स्वेच्छया किसी बात को करता है या करने का प्रयत्न करता है तब यह कहा जाता है कि वह उस कार्य को करने के लिए उकसाता है।
उदाहरण – A एक लोक ऑफिसर न्यायालय के वारंट द्वारा Y को पकड़ने के लिए प्राधिकृत है, B इस बात को जानते हुए कि C, Y नही है, A को जानबूझकर यह विश्वास दिलाता है कि C ही Y है, और A से C को पकड़वाता है। यहाँ B, C के पकड़े जाने का उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण करता है।

स्पष्टीकरण– जो कोई या तो किसी कार्य को करने से पहले या करने के समय उस कार्य को करने को सुकर (आसान) बनाने के लिए कोई बात करता है तो वह उस कार्य को करने में सहायता करता है।

धारा 46- दुष्प्रेरक– वह व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध करने का दुष्प्रेरण करता है या ऐसे कार्य के करने का दुष्प्रेरण करता है, अगर वह कार्य अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति द्वारा उसी आशय या ज्ञान से किया जाता जो दुष्प्रेरक का है।

साधारण शब्दो में यह धारा यह बताती है कि दुष्प्रेरक कौन है। इस धारा के अनुसार दुष्प्रेरक वह व्यक्ति है जो धारा 45 में षड्यंत्र करता है, उकसाता है या उसमें सहायता करता है।

स्पष्टीकरण 1- किसी कार्य के अवैध लोप का दुष्प्रेरण अपराध में आ सकेगा, चाहे दुष्प्रेरक उस कार्य को करने के लिए स्वयं आबद्ध ना हो।

उदाहरण – A चोरी करके भागता है और जाकर B के पीछे छिप जाता है। एक पुलिस अधिकारी जो A को ढूंढता हुआ आता है और B से पूछता है कि A कहां है, B पुलिस अधिकारी को नहीं बताता और बाद में B, A को चुपके से भगा देता है। यहां B ने अवैध लोप द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध किया है।
स्पष्टीकरण 2– दुष्प्रेरण का अपराध होने के लिए यह जरूरी नहीं है कि दुष्प्रेरित कार्य किया जाए या अपराध करने के लिए वही प्रभाव हो।

उदाहरण – C की हत्या करने के लिए A, B को उकसाता है। B वैसा करने से इन्कार कर देता है। A हत्या करने के लिए दुष्प्रेरण का दोषी है।

उदाहरण– D की हत्या करने के लिए A को को उकसाता है, B ऐसी उकसाहट में D को घाव देता है। D का घाव बाद में अच्छा हो जाता है। A हत्या करने के लिए B को उकसाने का दोषी है।

स्पष्टीकरण 3- यह जरूरी नहीं है कि दुष्प्रेरित व्यक्ति अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ हो या उसका वही दूषित आशय या ज्ञान हो जो दुष्प्रेरक का है।
उदाहरण – A दूषित आशय से एक बच्चे या पागल व्यक्ति को अपराध करने के लिए दुष्प्रेरित करता है। अगर वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जो उस अपराध को करने के लिए भले ही विधि के अनुसार समर्थ है और वही आशय रखता है जो कि A का है। A अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है।
उदाहरण – A चोरी कराने के आशय से Y के कब्जे से Y की सम्पत्ति लेने के लिए B को उकसाता है। B को यह विश्वास करने के लिए A उत्प्रेरित करता है कि वह सम्पत्ति A की है। B उस सम्पत्ति का इस विश्वास से कि वह A की सम्पत्ति है, Y के कब्जे से सदभावपूर्वक ले लेता है। B इस भ्रम में उसे बेईमानी से नहीं लेता और इसलिए चोरी का अपराध नहीं करता है लेकिन A चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी है और दण्ड से दण्डनीय है।

स्पष्टीकरण 4- अपराध का दुष्प्रेरण अपराध होने के कारण ऐसे दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण भी अपराध है।
उदाहरण – C को Y की हत्या करने को उकसाने के लिए B को A उकसाता है। B. Y की हत्या करने के लिए C को उकसाता है और B के उकसाने पर C की हत्या कर देता है। B अपने अपराध के लिए हत्या के दंड से दंडनीय है, और A ने उस अपराध को करने के लिए B को उकसाया, इसलिए A भी उसी दंड से दंडनीय है।

स्पष्टीकरण 5– षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि दुष्प्रेरक उस अपराध को करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर उस अपराध की योजना बनाए। इतना काफी है कि उस षड्यंत्र में शामिल हो, जिसके अनुसरण में वह अपराध किया जाता है।
उदाहरण – Y को विष (poison) देने के लिए A एक योजना B से मिलकर बनाता है। यह सहमति हो जाती है कि विष देगा। B, C को वह योजना समझा देता है कि कोई तीसरा व्यक्ति विष देगा, लेकिन A का नाम नहीं लेता। C सहमत हो जाता है और B को विष दे देता है। A विष देता है, Y की मृत्यु हो जाती है। यहां A और C ने मिलकर षड्यंत्र नहीं रचा है, तो भी C उस षड्यंत्र में शामिल रहा है, जिससे Y की हत्या की गई है। इसीलिए C ने इस धारा में अपराध किया है और हत्या के लिए दंड से दंडनीय है।

दुष्प्रेरण के प्रकार (Types of Abetment) भारतीय न्याय संहिता की धारा 45 में दुष्प्रेरण के तीन प्रकार दिए गए हैं-
1) उकसाकर

2) षड्यंत्र द्वारा।

3) साशय सहायता द्वारा

उकसाकर– इसका वर्णन धारा 45 के पहले खंड में मिलता है। उकसाने या भड़काने का अर्थ है- किसी व्यक्ति को दोषपूर्ण कार्य करने के लिए उत्तेजित करना और इसका अर्थ है सक्रिय रूप से सुझाव देना।
केस- आर बनाम डेलर– इस मामले में न्यायालय ने कहा कि उकसाने के द्वारा दुष्प्रेरण करने के लिए अपराध की दिशा में कुछ सक्रिय प्रक्रियाएं जरूरी है।
केस-क्कीन बनाम मोहित (1871)- इस मामले में एक स्त्री को सती होने के लिए कुछ लोगों ने तैयार किया। उसके सौतेली पुत्र उसे चिता तक ले गए। वहां खड़े होकर सबके साथ उसे उत्प्रेरित करते रहे। वह दुष्प्रेरण के दोषी होंगे क्योंकि उन्होंने स्त्री सती होने के लिए सक्रिय रूप से समर्थन किया।

पत्र द्वारा उकसाना – A एक पत्र लिखकर C की हत्या के लिए B को उकसाता है, उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध तभी पूरा हो जाता है जैसे ही उस पत्र में लिखी बातों का पता B को लगता है। अगर पत्र कभी भी B के पास नहीं पहुंचता है तो यह दुष्प्रेरित करने का एक प्रयत्न माना जाएगा।

षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण– इसका वर्णन धारा 45 के दूसरे खंड में मिलता है। दो या ज्यादा व्यक्ति किसी अवैध कार्य को करने या वैध कार्य को अवैध तरीके से करने के लिए सहमत होते हैं तो वे षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण करते हैं।
केस- वाइट चर्च (1890)- इस मामले में एक स्त्री ने अपने को गर्भवती समझकर जबकि वह गर्भवती नहीं थी किसी अन्य व्यक्ति से दवाई लेने का षड्यंत्र किया जिससे उसे गर्भपात हो जाए। वह षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण की दोषी है।
केस- पंडाला वेंकटस्वामी (1881)- इस मामले में निर्णय दिया गया कि अगर एक व्यक्ति अन्य लोगों के साथ मिलकर किसी झूठे दस्तावेज की फोटोकॉपी तैयार करता है और इस झूठे दस्तावेज को लिखने के लिए कागज खरीदता है तो वह जालसाजी के दुष्प्रेरण का अपराधी है क्योंकि यह ऐसे कार्य हैं जो अपराध करने में सहायता पहुंचाते हैं।
केस- हरधन चक्रवर्ती बनाम भारत संघ (1990)- इस मामले में याचिकादाता को षड्यंत्र के माध्यम से दुष्प्रेरण करने के लिए अभियोजित किया गया था। इस षड्यंत्र में नौ व्यक्ति शामिल थे जिसमें से आठ को दोषमुक्त कर दिया गया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्योंकि उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं हो सका और नौ दुष्प्रेरक में से आठ को दोषमुक्त कर दिया गया था, इसलिए केवल एक अकेले याचिकादाता को ही षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण के अपराध कादोषी नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि षड्यंत्र केवल एक व्यक्ति द्वारा संभव नहीं है।

साशय सहायता द्वारा दुष्प्रेरण :- धारा 45 का तीसरा खण्ड अपराध के करने ने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता के द्वारा दुष्प्रेरण का वर्णन करता है। जो किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है तो वह दुष्प्रेरण का दोषी होगा।
केवल सहायता पहुंचाना ही किसी अपराध का दुष्प्रेरण नहीं माना जाएगा जबकि सहायता पहुंचाने वाले व्यक्ति यह ना जानता हो कि कोई अपराध किया जा रहा है या अपराध की संभावना है, अपराध करने में सहायता पहुंचाने का आशय होना जरूरी है। लेकिन अगर सहायता देने वाले व्यक्ति को यह पता नहीं था कि जिस कार्य को करने में वह सहायता दे रहा है वह खुद ही एक अपराध है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह साशय उस काम को करने में सहायता करता है।
उदाहरण– A, B और C तीनों मित्र हैं। A और B में मतभेद हो जाता है। जिससे A, B को मार डालने का निश्चय कर लेता है। A एक बहाने से C के घर जाता है तथा C को प्रेरित करता है कि वह B को अपने घर बुलाए जबकि C को इस बात का जरा सा भी ज्ञान नहीं था कि वह B को उसके आने पर मार डालेगा। B आता है और A उसकी हत्या कर देता है। इस मामले में कहा जा सकता है कि A हत्या का दोषी है जबकि C का कोई आशय नही था कि कोई अपराध हो इसलिए हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी नही होगा।
उदाहरण– अगर A मारो मारो कहकर B को उत्तेजित करता है कि वह C को मार डालें और D, B के हाथों में लाठी पकड़ा देता है और इस तरह से या तो वह मार दिया जाता है या उसे गंभीर चोट पहुंचती है तो यहां A उकसाने द्वारा दुष्प्रेरण का दोषी है और D सहायता पहुंचाने के माध्यम से दुष्प्रेरण का दोषी है क्योंकि उसने B के हाथों में लाठी पकडाकर सहायता पहुंचाई और कार्य पूरा हुआ।

केस- फैय्याज हुसैन बनाम सम्राट- इस मामले में एक जमींदार ने संदिग्ध चोर को थर्ड डिग्री देने के लिए अपना मकान किराए पर दिया। इस तरह जमीदार कार्य के माध्यम से साशय सहायता द्वारा दुष्प्रेरण का दोषी है।

क्या अपराध के समय उपस्थिति सहायता मानी जाएगी :- अपराध करते समय अपराध स्थल पर किसी व्यक्ति का उपस्थित हो जाना ही केवल सहायता के माध्यम से दुष्प्रेरण नहीं माना जा सकता जब तक कि उस व्यक्ति का वैसा आशय ना हो।

धारा 47- भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण– वह व्यक्ति इस संहिता में अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो भारत से बाहर और उससे परे किया जाए, अगर भारत में किया जाता तो अपराध होता ।
उदाहरण – A जो भारत में है, वह B को जो बांग्लादेश में है, हत्या करने के लिए उकसाता है। A हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी है।

धारा 48- भारत में अपराध के लिए भारत से बाहर दुष्प्रेरण– कोई व्यक्ति जो इस संहिता में किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है जो भारत से बाहर और उससे परे किसी ऐसे कार्य के किए जाने का भारत में रहकर दुष्प्रेरण करता हैं जो अपराध होगा अगर भारत में किया जाए।
उदाहरण – A, D नामक देश में 8 को भारत में हत्या करने के लिए उकसाता है। A हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी है।

धारा 49- दुष्प्रेरण का दंड अगर दुष्प्रेरित कार्य किया जाए और उसके दंड के लिए कोई स्पष्ट उपबंध नहीं है- जो कोई किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है अगर दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के कारण किया जाता है, और ऐसे दुष्प्रेरण के दंड के लिए इस संहिता द्वारा कोई उपबंध नहीं किया गया है तो वह उस दंड से दंडित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए दिया गया है जिसका दुष्प्रेरण किया गया है।

स्पष्टीकरण– कोई कार्य या अपराध दुष्प्रेरण के कारण किया गया तब कहा जाता है जब वह उस उकसाहट या षडयंत्र के अनुसरण में या उस सहायता से किया जाता है जिससे दुष्प्रेरण होता है।

उदाहरण– B को झूठा साक्ष्य देने के लिए A उकसाता है। B उस उकसाहट के कारण अपराध करता है। A उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है और उसी दंड से दंडनीय है, जिससे B है।

उदाहरण – Y को विष देने का षडयंत्र A और B रचते हैं। A उस षड़यंत्र में विष लाकर B को इसलिए दे देता है कि वह उसे Y को दे। B उस षड़यंत्र में वह विष A की गैरहाज़िरी में Y को देता है और Y की मृत्यु कर देता है। यहाँ B हत्या का दोषी है। A षड़यंत्र द्वारा उस अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है और वह हत्या के लिए दंड से दण्डनीय है।

धारा 50- दुष्प्रेरण का दंड अगर दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है- जो कोई किसी अपराध को करने का दुष्प्रेरण करता है अगर दुष्प्रेरित व्यक्ति ने दुष्प्रेरक के आशय या ज्ञान से अलग आशय या ज्ञान से वह कार्य किया हो तो वह उसी दंड से दंडित किया जाएगा, जो उस अपराध के लिए दिया गया है।

साधारण शब्दो मे इस धारा के अनुसार अगर जिस व्यक्ति को दुष्प्रेरित किया जाता है और उसका आशय दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न हो तो भी दुष्प्रेरक का दायित्व कम नही हो जाता।
उदाहरण – A एक सात वर्ष से कम उम्र के बालक से B की हत्या कराता है। यहां A हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी है लेकिन बालक किसी अपराध का दोषी नहीं है उसे धारा 20 का बचाव मिलेगा।

धारा 51- दुष्प्रेरक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे अलग कार्य किया जाए- जब किसी कार्य का दुष्प्रेरण किया जाता है और कोई अलग कार्य किया जाए तब दुष्प्रेरक उस किए गए कार्य के लिए उसी तरह से और उस विस्तार तक जिम्मेदार होगा मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो। लेकिन यह तब जब किया गया कार्य दुष्प्रेरण का परिणाम था और उस उकसाहट के असर में या सहायता से या उस षड्यंत्र में किया गया था जिससे वह दुष्प्रेरण होता है।

उदाहरण – A एक शिशु को Y के भोजन में विष डालने के लिए उकसाता है और उसे विष देता है। वह शिशु उस उकसाहट में भूल से M के भोजन में, जो Y के भोजन के पास रखा हुआ है, विष डाल देता है। यहाँ अगर वह शिशु A के उकसाने के असर में कार्य कर रहा था और वह कार्य उस दुष्प्रेरण का परिणाम है तो A उसी तरह जिम्मेदार है मानो उसने उस शिशु को M के ही भोजन में विष डालने के लिए उकसाया हो।
उदाहरण – B को Y का घर जलाने के लिए A उकसाता है। B उस घर को आग लगा देता है और उसी समय वहां सम्पत्ति की चोरी करता है। A हालांकि घर को जलाने के दुष्प्रेरण का दोषी है, लेकिन चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं है, क्योंकि चोरी एक अलग कार्य था और उस घर को जलाने का परिणाम नहीं थी।
उदाहरण – B और C को एक घर मे रात में लूट करने के लिए उकसाता है और उनको उसके लिए हथियार देता है। B और C घर में घुस जाते हैं और Y द्वारा रुकावट डालने पर Y की हत्या कर देते हैं। यहां अगर वह हत्या उस दुष्प्रेरण के कारण की गई थी तो A हत्या के लिए दण्ड से दंडनीय है।

धारा 52- दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दंड से दंडनीय है- अगर वह कार्य जिसके लिए दुष्प्रेरक धारा 51 के अनुसार जिम्मेदार है, दुष्प्रेरित कार्य के अलावा किया जाता है और वह कोई अलग-अलग अपराध करता है तो दुष्प्रेरक उन अपराधों में से हर एक के लिए दंडनीय है।

साधारण शब्दों में यह धारा दुष्प्रेरित अपराध और किये गए अपराध दोनों को दंडनीय बनाती है।
उदाहरण – B को A एक लोकसेवक को बलपूर्वक रोकने के लिए उकसाता है। 8 ऐसा ही करता है। रुकावट डालने पर B लोकसेवक को जानबूझकर गम्भीर चोट भी पहुंचाता है। B ने दो अपराध किए है। इसीलिए B दोनों अपराधों के लिए दंडित है और अगर A जानता था कि उस ऐसी रुकावट डालने में B गम्भीर चोट करेगा तो A भी हर एक अपराध के लिए दंडनीय होगा।धारा 53- दुष्प्रेरित कार्य से हुए उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक द्वारा आशयित से अलग हो- जब किसी कार्य का दुष्प्रेरण दुष्प्रेरक द्वारा किसी विशिष्ट प्रभाव को करने के आशय से किया जाता है और दुष्प्रेरण के कारण जिस कार्य के लिए दुष्प्रेरक दायित्व के अधीन है वह कार्य दुष्प्रेरक के द्वारा अलग प्रभाव करता है तब दुष्प्रेरक उस प्रभाव के लिए उसी तरह जिम्मेदार है मानो उसने उस कार्य का दुष्प्रेरण उसी प्रभाव को करने के आशय से किया हो। लेकिन यह तब जब वह यह जानता था कि दुष्प्रेरित कार्य से वह प्रभाव होने की सम्भावना है।

उदाहरण – ४ को गम्भीर चोट करने के लिए 8 को उकसाता है। B उस उकसाहट के कारण ४ को गम्भीर चोट करता है। जिससे Y की मृत्यु हो जाती है। यहां अगर A यह जानता था कि उस गम्भीर चोट से मृत्यु की सम्भावना है तो A, Y की हत्या के लिए दंडनीय है।

धारा 54- अपराध करते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति- जब कोई व्यक्ति उस समय उपस्थित हो जब वह कार्य या अपराध किया जाए जिसके लिए वह दुष्प्रेरण के लिए दंडनीय होता तब यह समझा जाएगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है।

केस- बारेंद्र कुमार घोष बनाम एंपरर (1924)- इस मामले में न्यायालय ने कहा कि यह धारा केवल तभी प्रयोग में आती है जब सबसे पहले दुष्प्रेरण के समान परिस्थितियों को साबित कर दिया जाता है और जब अपराध होते समय अभियुक्त की उपस्थिति भी साबित हो जाती है। धारा 54 ऐसे मामलों से संबंधित है जहां दुष्प्रेरण का अपराध तो हुआ ही है साथ ही अपराध होते समय घटनास्थल पर दुष्प्रेरक भी मौजूद था।
उदाहरण – A, Y की हत्या करने के इरादे से 8 को जो छह वर्ष का बालक है Y के खाने में विष मिलाने के लिए उकसाता है। B उसके भोजन में विष मिला देता है जिसके कारण Y की मृत्यु हो जाती है। जब B ने खाने में विष मिलाया उस समय A भी उपस्थित था। इस मामले में 8 किसी अपराध का दोषी नहीं होगा लेकिन A जिसने अपराध का दुष्प्रेरण किया है इस धारा में की हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी होगा।

धारा 55- मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण-

अगर वह अपराध उस दुष्प्रेरण के कारण ना किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दंड का स्पष्ट उपबन्ध संहिता में ना हो- दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भाँति के कारावास जो सात वर्ष तक हो सकता है और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

अगर अपहानि करने वाला कार्य किया जाता है- दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो चौदह वर्ष तक का हो सकता है और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

उदाहरण – B को Y की हत्या करने के लिए A उकसाता है। अगर B, Y की हत्या कर देता है तो 8 मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय होगा और A सात वर्ष के कारावास से दंडित होगा। अगर दुष्प्रेरण के बाद अपराध करने में ४ को कोई चोट हो तो A चौदह वर्ष के कारावास और जुर्माने से दंडनीय होगा।

धारा 56- कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण-

अगर अपराध ना किया जाए वह उस अपराध के लिए तय किसी भांति के कारावास की दीर्घतम अवधि के एक चौथाई भाग से या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।

अगर दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोकसेवक है जिसका कर्तव्य अपराध रोकना हो- उस अपराध के लिए तय किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे भाग तक से या ऐसे जुमनि से जो अपराध के लिए तय है या दोनों से दंडित किया जायेगा।

उदाहरण- झूठा साक्ष्य देने के लिए B को A उकसाता है। यहां अगर B झूठा साक्ष्य ना दे तो भी A ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है और वह दंडनीय है।

उदाहरण – A एक अधिकारी जिसका कर्तव्य लूट को रोकना है लूट करने का दुष्प्रेरण करता है यहाँ वह लूट नहीं की जाती A उस अपराध के लिए कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से और जुर्माने से भी दण्डनीय है।

धारा 57- लोक साधारण द्वारा या दस से ज्यादा व्यक्तियों द्वारा अपराध करने का दुष्प्रेरण- वह दोनों में से किसी भी भाँति के

कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेंगी या जुनि या दोनों से दंडित किया जाएगा।

उदाहरण – A एक लोकस्थान में एक प्लेकार्ड चिपकाता है, जिसमें दस से ज्यादा सदस्यो के एक पंथ को एक विरोधी पंथ के सदस्यों पर हमला करने से किसी निश्चित समय और स्थान पर मिलने के लिए उकसाया गया है। A ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
धारा 58- मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना-

अगर अपराध कर दिया जाए दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो सात वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्मान से दंडित होगा।

अगर अपराध ना किया जाए दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

उदाहरण – A यह जानते हुए कि स्थान पर डकैती पडने वाली है, मजिस्ट्रेट को यह झूठी सूचना देता है कि डकैती ८ स्थान पर पडने वाली है जो दूसरी दिशा में है और मजिस्ट्रेट को भुलावा देता है। डकैती B स्थान पर पड़ती है। A इस धारा में दंडनीय है।

धारा 59- किसी ऐसे अपराध के करने की परिकल्पना का लोकसेवक द्वारा छिपाया जाना जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है-

अगर अपराध कर दिया जाए वह उस अपराध के लिए तय किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे तक का या जुर्माने या दोनों से दण्डित होगा।

अगर अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय है- वह दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो दस वर्ष तक का हो सकेगा।

अगर अपराध नहीं किया जाए वह उस अपराध के लिए तय किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है या दोनों से दंडित किया जाएगा।

उदाहरण – A एक पुलिस ऑफिसर लूट से संबंधित सभी सूचना देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए और यह जानते हुए कि B लूट करने की योजना बना रहा है ऐसी सूचना देने का लोप करता है। यहां A ने B की परिकल्पना के अवैध लोप द्वारा छिपाया है और वह इस धारा में दंडनीय है।

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धारा 60- कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना-

अगर अपराध कर दिया जाए वह उस अपराध के लिए तय दोनों में से किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक के कारावास से दण्डित होगा।

उदाहरण – अगर अपराध के लिए आठ वर्ष की सज़ा है तो उसका एक चौथाई यानी दो वर्ष की सज़ा मिलेगी।

अगर वह अपराध नहीं किया जाए- कारावास की दीर्घतम के अवधि के आठवें भाग तक की हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से जो उस अपराध के लिए उपबंधित है या दोनों से दंडित होगा।

उदाहरण- अगर अपराध के लिए आठ वर्ष की सज़ा है तो उसका 8वाँ भाग हो तो एक वर्ष की सज़ा मिलेगी।

धारा 53- दुष्प्रेरित कार्य से हुए उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक द्वारा आशयित से अलग हो- जब किसी कार्य का दुष्प्रेरण दुष्प्रेरक द्वारा किसी विशिष्ट प्रभाव को करने के आशय से किया जाता है और दुष्प्रेरण के कारण जिस कार्य के लिए दुष्प्रेरक दायित्व के अधीन है वह कार्य दुष्प्रेरक के द्वारा अलग प्रभाव करता है तब दुष्प्रेरक उस प्रभाव के लिए उसी तरह जिम्मेदार है मानो उसने उस कार्य का दुष्प्रेरण उसी प्रभाव को करने के आशय से किया हो। लेकिन यह तब जब वह यह जानता था कि दुष्प्रेरित कार्य से वह प्रभाव होने की सम्भावना है।
उदाहरण – Y को गम्भीर चोट करने के लिए B को उकसाता है। B उस उकसाहट के कारण Y को गम्भीर चोट करता है। जिससे Y की मृत्यु हो जाती है। यहां अगर A यह जानता था कि उस गम्भीर चोट से मृत्यु की सम्भावना है तो A, Y की हत्या के लिए दंडनीय है।

धारा 54- अपराध करते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति- जब कोई व्यक्ति उस समय उपस्थित हो जब वह कार्य या अपराध किया जाए जिसके लिए वह दुष्प्रेरण के लिए दंडनीय होता तब यह समझा जाएगा कि उसने ऐसा कार्य या अपराध किया है।

केस- बारेंद्र कुमार घोष बनाम एंपरर (1924)- इस मामले में न्यायालय ने कहा कि यह धारा केवल तभी प्रयोग में आती है जब सबसे पहले दुष्प्रेरण के समान परिस्थितियों को साबित कर दिया जाता है और जब अपराध होते समय अभियुक्त की उपस्थिति भी साबित हो जाती है। धारा 54 ऐसे मामलों से संबंधित है जहां दुष्प्रेरण का अपराध तो हुआ ही है साथ ही अपराध होते समय घटनास्थल पर दुष्प्रेरक भी मौजूद था।
उदाहरण – A, Y की हत्या करने के इरादे से Y को जो छह वर्ष का बालक है Y के खाने में विष मिलाने के लिए उकसाता है। B उसके भोजन में विष मिला देता है जिसके कारण Y की मृत्यु हो जाती है। जब B ने खाने में विष मिलाया उस समय A भी उपस्थित था। इस मामले में Y किसी अपराध का दोषी नहीं होगा लेकिन A जिसने अपराध का दुष्प्रेरण किया है इस धारा में की हत्या के दुष्प्रेरण का दोषी होगा।

धारा 55- मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण

अगर वह अपराध उस दुष्प्रेरण के कारण ना किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दंड का स्पष्ट उपबन्ध संहिता में ना हो- दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भाँति के कारावास जो सात वर्ष तक हो सकता है और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
अगर अपहानि करने वाला कार्य किया जाता है- दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो चौदह वर्ष तक का हो सकता है और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

उदाहरण – B को Y की हत्या करने के लिए A उकसाता है। अगर B, Y की हत्या कर देता है तो Y मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय होगा और A सात वर्ष के कारावास से दंडित होगा। अगर दुष्प्रेरण के बाद अपराध करने में Y को कोई चोट हो तो A चौदह वर्ष के कारावास और जुर्माने से दंडनीय होगा।

धारा 56- कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण-
अगर अपराध न किया जाए– वह उस अपराध के लिए तय किसी भांति के कारावास की दीर्घतम अवधि के एक चौथाई भाग से या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा।
अगर दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोकसेवक है जिसका कर्तव्य अपराध रोकना हो- उस अपराध के लिए तय किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे भाग तक से या ऐसे जुमनि से जो अपराध के लिए तय है या दोनों से दंडित किया जायेगा।

उदाहरण– झूठा साक्ष्य देने के लिए B को A उकसाता है। यहां अगर B झूठा साक्ष्य ना दे तो भी A ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है और वह दंडनीय है।

उदाहरण – A एक अधिकारी जिसका कर्तव्य लूट को रोकना है लूट करने का दुष्प्रेरण करता है यहाँ वह लूट नहीं की जाती A उस अपराध के लिए कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे से और जुर्माने से भी दण्डनीय है।

धारा 57- लोक साधारण द्वारा या दस से ज्यादा व्यक्तियों द्वारा अपराध करने का दुष्प्रेरण– वह दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेंगी या जुनि या दोनों से दंडित किया जाएगा।
उदाहरण – A एक लोकस्थान में एक प्लेकार्ड चिपकाता है, जिसमें दस से ज्यादा सदस्यो के एक पंथ को एक विरोधी पंथ के सदस्यों पर हमला करने से किसी निश्चित समय और स्थान पर मिलने के लिए उकसाया गया है। A ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।

धारा 58- मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना-
अगर अपराध कर दिया जाए– दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो सात वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्मान से दंडित होगा।

अगर अपराध ना किया जाए– दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

उदाहरण – A यह जानते हुए कि स्थान पर डकैती पडने वाली है, मजिस्ट्रेट को यह झूठी सूचना देता है कि डकैती C स्थान पर पडने वाली है जो दूसरी दिशा में है और मजिस्ट्रेट को भुलावा देता है। डकैती B स्थान पर पड़ती है। A इस धारा में दंडनीय है।

धारा 59- किसी ऐसे अपराध के करने की परिकल्पना का लोकसेवक द्वारा छिपाया जाना जिसका निवारण करना उसका कर्तव्य है-
✓अगर अपराध कर दिया जाए वह उस अपराध के लिए तय किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि के आधे तक का या जुर्माने या दोनों से दण्डित होगा।
✓अगर अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय है- वह दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से जो दस वर्ष तक का हो सकेगा।
✓अगर अपराध नहीं किया जाए वह उस अपराध के लिए तय किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की या ऐसे जुर्माने से, जो उस अपराध के लिए उपबंधित है या दोनों से दंडित किया जाएगा।

उदाहरण – A एक पुलिस ऑफिसर लूट से संबंधित सभी सूचना देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए और यह जानते हुए कि B लूट करने की योजना बना रहा है ऐसी सूचना देने का लोप करता है। यहां A ने B की परिकल्पना के अवैध लोप द्वारा छिपाया है और वह इस धारा में दंडनीय है।

धारा 60- कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना-
अगर अपराध कर दिया जाए – वह उस अपराध के लिए तय दोनों में से किसी भाँति के कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक के कारावास से दण्डित होगा।
उदाहरण – अगर अपराध के लिए आठ वर्ष की सज़ा है तो उसका एक चौथाई यानी दो वर्ष की सज़ा मिलेगी।
अगर वह अपराध नहीं किया जाए– कारावास की दीर्घतम के अवधि के आठवें भाग तक की हो सकेगी या ऐसे जुर्माने से जो उस अपराध के लिए उपबंधित है या दोनों से दंडित होगा।
उदाहरण– अगर अपराध के लिए आठ वर्ष की सज़ा है तो उसका 8वाँ भाग हो तो एक वर्ष की सज़ा मिलेगी।

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