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क्षतिपूर्ति की संविदा किसे कहते हैं? और इसके आवश्यकता तत्व?

क्षतिपूर्ति की संविदा एक विशिष्ट प्रकार की संविदा है। इसमें पर-व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कारित क्षति की पूर्ति का दायित्व अपने ऊपर लेता है जबकि सामान्य प्रकृति की संविदाओं में क्षति की पूर्ति का दायित्व स्वयं पक्षकार पर होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कतिपय सविदाओं में वचनदाता द्वारा वचन […]

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Consumer Protection Act उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019

भारत में प्रथम बार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सन् 1986 में पारित किया गया जो लगभग 34 वर्षों तक प्रभाव में रहा। देश, काल एवं परिस्थितियों में बदलाव आने से जब यह अधिनियम अनुपयोगी लगने लगा तो सन् 2019 में नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। उपभोक्ता कौन है :- उपभोक्ता :- वह व्यक्ति है

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क्षति की दूरस्थता का सिद्धांत (Doctrine of Remoteness of damages) दूरस्थता की कसौटी?

विधि का यह सुस्थापित सिद्धान्त है कि किसी भी व्यक्ति को उसके लापरवाहीपूर्वक कृत्यों से उद्‌भूत होने वाली प्रत्येक हानि के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है; क्योंकि किसी भी कृत्य के परिणामों की सीमा नहीं होती। वह केवल उन्हीं परिणामों के लिए उत्तरदायी हो सकता है जो उसके कृत्य से सीधे सम्बन्धित हो।

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मेयर ऑफ ब्रेडफोर्ड कॉरपोरेशन बनाम पिकिल्स? विल्किसन बनाम डाउन्टन ?

‘मेयर ऑफ ब्रेडफोर्ड कॉरपोरेशन बनाम पिकिल्स‘ (1895)ए.सी. 587] का एक महत्त्वपूर्ण मामला है। इस मामले में प्रतिवादी किसी बात को लेकर वादी से नाराज था। प्रतिवादी ने अपनी भूमि में नलकूप बनाया ताकि वादी के कुए का पानी सूख जाये। इस पर वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध नुकसानी का वाद संस्थित किया जो न्यायालय द्वारा

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भारत में टोर्ट्स(अपकृत्य)कानून की उत्पत्ति और विकास?

उत्तर– भारत में अपकृत्य विधि के उद्भव का इतिहास सन् 1726 के चार्टर से जुड़ा हुआ है। सन् 1726 के चार्टर के अन्तर्गत कलकत्ता, बम्बई एवं मद्रास के प्रेसीडेन्सी नगरों में आंग्ल न्यायालयों की स्थापना की गई थी जिन्हे ‘मेयर कोर्ट्स‘ के नाम से जाना जाता था। ये न्यायालय ‘कॉमन लॉ’ के अधीन कार्य करते

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डेनियल लतीफी और अन्य याचिकाकर्ता बनाम भारत संघ प्रतिवाद (एआईआर 2001)

एआईआर 2001 सुप्रीम कोर्ट 3958 जी.बी. पटनायक, एस. राजेंद्र बाबू, डी.पी. महापात्र, दोरैस्वामी राजू। और शिवराज वी. पाटिल. जे.जे. डेनियल लतीफी और अन्य, याचिकाकर्ता बनाम भारत संघ, प्रतिवादी। अपराधी पी.सी. (1974 का 2) एस.(भरण पोषण अधिनियम की धारा 125 भारत का संविधान का अनुच्छेद 14,15,21 मुस्लिम महिला (अधिकारों का संरक्षण) तलाक अधिनियम 1986 (1986 का

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Injuria Sine Damnum(बिना हानि के क्षति) Damnum Sine Injuria(बिना क्षति के हानि)

बिना हानि के क्षति (Injuria sine damnum) – अपकृत्य विधि में इस सूत्र का बड़ा महत्व है। वस्तुतः यही सूत्र अपकृत्य का आधार एवं वाद-योग्य है। अपकृत्य विधि का यह सामान्य सिद्धान्त है कि किसी व्यक्ति के विधिक अधिकारों का उल्लंघन अथवा अतिलंघन वाद योग्य होता है। जिस व्यक्ति के विधिक अधिकारों के उल्लंघन होता

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अपकृत्य एवं संविदा भंग में अन्तर ? अपकृत्य एवं अपराध में अन्तर बतायें?

अपकृत्य एवं संविदा-भंग में अन्तर– अपकृत्य संविदा-भंग से भिन्न है। इन दोनो में निम्नांकित अन्तर पाया जाता है- (1) अपकृत्य में किसी व्यक्ति द्वारा उन कर्त्तव्यों का उल्लंघन किया जाता है जो विधि द्वारा पूर्व-निर्धारित होते है; जबकि संविदा-भंग में किसी पक्ष द्वारा उन शर्तों का उल्लंघन किया जाता है जो दोनों पक्षकारों में करार

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अपकृत्य की परिभाषा क्या है? सामणड और विनफील्ड के अनुसार?

उत्तर:-विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को कई विधिक अधिकार प्रदान किये गये है। साथ ही इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपचार भी उपलब्ध कराये गये है। उपचार विहीन अधिकार अर्थहीन होते है। इसीलिये कहा जाता है कि “जहाँ अधिकार है वहाँ उपचार है” (Ubi jus ibi remedium) । जब किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन

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स्वीकृति किसे कहते हैं?एक वैध स्वीकृति के आवश्यक तत्वों की विवेचना कीजिए?

उत्तर-स्वीकृति को प्रतिग्रहण (acceptance) भी कहा जाता है। स्वीकृति का संविदा के सृजन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जब तक किसी प्रस्ताव को स्वीकृत नहीं किया जाता, वह अर्थहीन होता है। प्रस्ताव स्वीकार कर लिये जाने पर वह वचन बन जाता है और वचन प्रतिफल के साथ मिलकर करार का रूप धारण कर लेता है। परिभाषा

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