Law Of Tort

भारत में टोर्ट्स(अपकृत्य)कानून की उत्पत्ति और विकास?

उत्तर– भारत में अपकृत्य विधि के उद्भव का इतिहास सन् 1726 के चार्टर से जुड़ा हुआ है। सन् 1726 के चार्टर के अन्तर्गत कलकत्ता, बम्बई एवं मद्रास के प्रेसीडेन्सी नगरों में आंग्ल न्यायालयों की स्थापना की गई थी जिन्हे ‘मेयर कोर्ट्स‘ के नाम से जाना जाता था। ये न्यायालय ‘कॉमन लॉ’ के अधीन कार्य करते …

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Injuria Sine Damnum(बिना हानि के क्षति) Damnum Sine Injuria(बिना क्षति के हानि)

बिना हानि के क्षति (Injuria sine damnum) – अपकृत्य विधि में इस सूत्र का बड़ा महत्व है। वस्तुतः यही सूत्र अपकृत्य का आधार एवं वाद-योग्य है। अपकृत्य विधि का यह सामान्य सिद्धान्त है कि किसी व्यक्ति के विधिक अधिकारों का उल्लंघन अथवा अतिलंघन वाद योग्य होता है। जिस व्यक्ति के विधिक अधिकारों के उल्लंघन होता …

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अपकृत्य एवं संविदा भंग में अन्तर ? अपकृत्य एवं अपराध में अन्तर बतायें?

अपकृत्य एवं संविदा-भंग में अन्तर– अपकृत्य संविदा-भंग से भिन्न है। इन दोनो में निम्नांकित अन्तर पाया जाता है- (1) अपकृत्य में किसी व्यक्ति द्वारा उन कर्त्तव्यों का उल्लंघन किया जाता है जो विधि द्वारा पूर्व-निर्धारित होते है; जबकि संविदा-भंग में किसी पक्ष द्वारा उन शर्तों का उल्लंघन किया जाता है जो दोनों पक्षकारों में करार …

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अपकृत्य की परिभाषा क्या है? सामणड और विनफील्ड के अनुसार?

उत्तर:-विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को कई विधिक अधिकार प्रदान किये गये है। साथ ही इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपचार भी उपलब्ध कराये गये है। उपचार विहीन अधिकार अर्थहीन होते है। इसीलिये कहा जाता है कि “जहाँ अधिकार है वहाँ उपचार है” (Ubi jus ibi remedium) । जब किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन …

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