रेस जेस्टे का सिद्धांत (Doctrine of Res-geste) अन्यत्र उपस्थिति का सिध्दांत।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 इस सम्बंध में प्रावधान करती है। जिसे एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति कहा गया है।
धारा 4 के अनुसार जो तथ्य विवाद्यक ना होते हुए भी किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य से इस तरह संबद्ध या जुड़े है कि वे एक ही संव्यवहार के भाग हैं वे तथ्य सुसंगत हैं चाहे वे उसी समय और स्थान पर या अलग-अलग समयों और स्थानों पर घटित हुए हों।
उदाहरण – B को पीटकर उसकी हत्या करने का A अभियुक्त है। A या B या पास खड़े लोगों द्वारा जो कुछ भी पिटाई के समय या उससे पहले या बाद कहा गया था या किया गया था वह उसी संव्यवहार का भाग बन गया है और वह सुसंगत तथ्य है।
उदाहरण – A एक सशस्त्र विद्रोह में भाग लेकर भारत सरकार के खिलाफ युद्ध करने का अभियुक्त है। जिसमें संपत्ति नष्ट की जाती है फौज पर हमला किया जाता है और जेलें तोड़कर खोली जाती हैं ये सभी तथ्य का सुसंगत है चाहे A उन सभी में उपस्थित ना रहा हो।
रेस्जेस्टे का अर्थ (Meaning of Resgestae) – इस धारा का सिद्धांत यह है कि जब कोई संव्यवहार जैसे कि कोई संविदा या अपराध विवाधक तथ्य हो तो हर ऐसे तथ्य का साक्ष्य दिया जाता है जो उसी संव्यवहार का भाग है। यह धारा अंग्रेजी कानून के उस सिद्धांत पर आधारित है जिसे रेस जेस्टे का सिद्धांत कहते हैं हालांकि यह शब्द धारा में प्रयोग नहीं किए गए है। ये शब्द लैटिन भाषा के हैं और इसका शाब्दिक अर्थ है “जो काम किया गया है” और जब अंग्रेजी में अनुवाद किया जाता है तो इसका अर्थ होगा कि ऐसे कथन और कार्य जो किसी संव्यवहार के साथ हुए हैं।”
केस- रटन बनाम कीन (1971)- इस मामले में एक व्यक्ति पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप था उसने बचाव में कहा कि गोली दुर्घटनावश चल गई थी। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। उसके खिलाफ एक साक्ष्य यह भी था कि उसकी पत्नी ने घटना से पहले टेलीफोन मिलाया और ऑपरेटर से लड़की ने कहा कि मुझे पुलिस दीजिए वह तकलीफ में बोल रही थी और जल्दी से अपना पता लिखवाया और कॉल ठप हो गई ऑपरेटर ने पुलिस को बताया पुलिस वहाँ पहुँची और उसने वहाँ उसकी लाश देखी। न्यायालय ने कहा कि यह दुर्घटना नहीं है क्योंकि कोई व्यक्ति सपने में भी नहीं सोच सकता कि उसके साथ दुर्घटना होने वाली है और पुलिस को बुला लें। इसे एक ही संव्यवहार का साक्ष्य माना।
केस- आर बनाम बेडिफिल्ड (1879)- इस मामले में एक स्त्री जिसका गला कटा हुआ था। अचानक उस कमरे से बाहर निकली जिसमें उसे जख्मी किया गया था और चिल्लाई डियर आन्टी देखो बेडिफिल्ड ने मेरी क्या दुर्दशा की है।
मुख्य न्यायमूर्ति कोकबर्न ने इस कथन को रेस्जेस्टे नहीं माना और कहा कि जब अभियुक्त उसका गला काटने आगे बढ़ रहा था उस समय वह कहती हुई सुनी जाती कि मुझे मत मारों तब वह कथन ग्राह्य होता। जबकि इस मामले में ऐसा नहीं था। जो कुछ भी उसने कहा था वह सारी घटना हो जाने के बाद कहा था उसके कथन को मृत्युकालिक कथन भी नहीं माना क्योंकि कथन करते समय उसे यह विश्वास नही था कि वह मरने जा रही है। बाद में इस निर्णय की आलोचना हुई। इस आलोचना के बावजूद हाउस ऑफ लॉर्डस ने आर बनाम क्रिस्टाइ (1914) में बेडिफिल्ड के निर्णय का समर्थन किया। इस मामले में एक छोटे लड़के पर अभियुक्त ने अश्लील हमला किया। लड़के ने अपनी माँ को बता दिया कि किस व्यक्ति ने उसके साथ अशिष्ट व्यवहार किया। बच्चों ने जो कुछ बताया उसके कथन का साक्ष्य ग्रहण नहीं किया गया। न्यायालय ने कहा कि बच्चे की बात घटना से लेकर परिस्थितियों में और समय में इतनी दूर थी कि उसके बारे में किसी भी तरह की कल्पना से यह नहीं कहा जा सकता कि वह इस घटना का हिस्सा थी।
केस- आर बनाम फोस्टर (1834)- इस मामले में अभियुक्त पर आरोप था कि उसने गाडी चढ़ाकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी वही एक व्यक्ति ने देखा था। कि गाडी बहुत तेज स्पीड से आ रही थी उसने दुर्घटना नहीं देखी लेकिन तुरंत ही घायल व्यक्ति की चिल्लाहट सुनी और वह भागकर उस व्यक्ति के पास पहुंचा और उसने उसे बताया कि उस गाडी ने उसे टक्कर मार दी। इस मामले में मृतक ने जो भी बोला था वह घटना हो जाने के बाद बोला गया था और लगभग कई सेकंड गुजर गए होंगे फिर भी उन्हें दुर्घटना का भाग माना गया।
केस- आर एम० मालकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1973)- इस मामले में एक डॉक्टर के खिलाफ गलत ऑपरेशन करने की जाँच मेडिकल बोर्ड द्वारा चल रही थी। मेडिकल बोर्ड के एक डॉक्टर ने उससे फोन करके रिश्वत माँगी। उसने बॉम्बे पुलिस कमिश्नर से शिकायत की तब उसके फोन को टेप किया गया जो घटना का एक संव्यवहार माना गया। न्यायालय ने कहा कि जब कोई ऐसी बातचीत चल रही हो जो किसी संव्यवहार का भाग होने के नाते सुसंगत है तो अगर उसे टेप कर लिया गया है तो ऐसी टेप सुसंगत होगी। यह रेसजेस्टे होगी।
केस- रतन सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (1997)- इस मामले में एक बस को आग से जलने की वारदात में कुछ पीड़ित यात्रियों को अस्पताल पहुंचाया गया और वहां पर मजिस्ट्रेट ने कधन लिया। मामले में निर्णय हुआ कि यह कथन वारदात के समय से इतना दूर चला गया था कि उसे वारदात का हिस्सा नहीं माना जा सकता था।
दूसरे शब्दों में किसी भी कथन को किसी वारदात का हिस्सा माना जाए इसके लिए यह जरूरी है कि बोले गए शब्द उस वारदात के साथ-साथ हुए हो या लगभग उसी समय हुए हो ताकि यह कहा जा सके कि वह उस वारदात के दौरान या तुरंत पहले या तुरंत बाद हुए हो।