हानि का अर्थ-धन, सुख, स्वास्थ्य आदि किसी भी प्रकार की हानि।
क्षति का अर्थ– किसी व्यक्ति के सामान्य या व्यक्तिगत अधिकार में कोई बाधा भले ही यह जाने या अनजाने में किया गया हो।
क्षति बिना हानि (Injuria Sine Damnum)-इसका अर्थ है- वह व्यक्ति जिसका कोई कानूनी अधिकार भंग किया गया है, भले ही उसे इससे कोई रूपए-पैसे की हानि न पहुंची हो, फिर भी वह क्षतिपूर्ति के लिए वाद दायर कर सकता है।
ऐसे मामलो में केवल यह साबित करना होता है कि कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया गया है भले ही उसे कोई आर्थिक हानि ना हुई हो।
केस- ऐशबी बनाम व्हाइट (1703)- इस मामले में वादी जो एक मतदाता था, प्रतिवादी ने उसका वोट लेने से मना कर दिया, इससे वादी को कोई हानि नहीं हुई क्योंकि जिसे वह वोट देना चाहता था वही जीत गया। मुख्य न्यायाधीश होल्ट ने कहा कि यदि वादी के पास कोई अधिकार है तो उसे उपचार भी मिलना चाहिए। वास्तव में उपचार के बिना किसी अधिकार की बात सोची भी नहीं जा सकती।
भारत में इस सिद्धांत का रूप :-
केस- कलिप्पा बनाम व्यपुटी– न्यायालय ने कहा कि यदि वादी के अधिकार का उल्लंघन होता है और वास्तविक क्षति का कोई सबूत नहीं है तो भी आर्थिक नुकसानी के बिना वह डिक्री प्राप्त करने का हकदार है।
केस- काली किशन बनाम जदूलाल मलिक– इस मामले में वादी और प्रतिवादी एक सोते के किनारो के मालिक थे।
न्यायालय ने कहा कि वादी ना तो नुकसान साबित कर सका और ना ही किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन साबित कर पाया। यदि अधिकार का उल्लंघन हुआ हो तो वादी नुकसानी पाने का अधिकारी हो जाता है।
हानि बिना क्षति (Damnum Sine Injuria) :-
इसका अर्थ है- जब किसी व्यक्ति के कार्य से हानि तो पहुंची हो लेकिन किसी कानूनी अधिकार का उल्लंघन न हुआ हो तो क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा। केवल धन या संपत्ति की हानि के लिए वाद दायर नहीं होगा। कानूनी अधिकार के उल्लंघन के बिना हुई हानि के लिए मुकदमा नहीं किया जा सकता भले ही उससे कितनी भी बड़ी आर्थिक हानि क्यों न उठानी पड़े।
केस- ग्लोसेस्टर ग्रामर स्कूल का मामला– इस मामले में एक पुराने स्कूल के अधिकतर बच्चे नए स्कूल में दाखिल हो गये। पुराने स्कूल को भारी आर्थिक हानि हुई। न्यायालय ने कहा कि विपक्षी को भले ही हानि क्यों न उठानी पड़ी हो, लेकिन वह क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का हकदार नहीं है, क्योंकि प्रतिवादी को स्कूल खोलने का सामान्य अधिकार प्राप्त था।
केस- उषाबेन बनाम भाग्यलक्ष्मी चित्र मंदिर (1978)- इस मामले में कहा गया कि जय संतोषी मां नामक चलचित्र का प्रदर्शन करने से रोक दिया जाए क्योंकि इस चलचित्र में सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को ईर्ष्यालू दिखाया गया है, जिससे वादी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है।
न्यायालय ने कहा कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना किसी विधिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
केस- टाउन एरिया कमेटी बनाम प्रभुदयाल (1975)- न्यायालय ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अवैध रूप से किसी भवन का निर्माण करता है और नगर पालिका के अधिकारी ऐसे भवन को गिरा दे तो संपत्ति के मालिक को कोई विधिक क्षति नहीं हुई है।