तथ्य की भूल क्षम्य है लेकिन विधि की भूल क्षम्य नही
(Mistake of fact excusable but mistake of law is non-excusable)
धारा 14 के अनुसार कोई बात अपराध नही है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या तथ्य के भूल के कारण ना कि विधि भूल के कारण, सदभावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है।
धारा 17 के अनुसार कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत हो या तथ्य की भूल के कारण न कि विधि की भूल के कारण, सदभावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत है।
तथ्य की भूल क्षम्य है, विधि की भूल क्षम्य नहीं है- इसे एक महत्त्वपूर्ण सूत्र से भी वर्णित किया जाता है- “Ignorantia Facti Excusat Ignorantia Legis Neminem Excusat”
भूल– इसका प्रयोग अनभिज्ञता से हुआ है। अनभिज्ञता का अर्थ है ज्ञान का अभाव। तथ्य की भूल मात्र विस्मृति नहीं है, बल्कि अज्ञान और अपूर्ण भी हो सकती है और दुर्भाग्य द्वारा हुई चूक भी है।
तथ्य की भूल से सम्बंधित मामले-
केस- आर बनाम टॉल्सन (1889)- इस मामले में एक महिला पर द्विविवाह का अभियोग चलाया गया क्योंकि उसके पति के भाई ने बताया था कि वह जिस जहाज से गया था वह डूब गया है जिसके बाद महिला ने स्वयं को विधवा मानकर दूसरा विवाह कर लिया था। न्यायमूर्ति केव ने कहा कि ईमानदारी से हुई युक्तियुक्त भूल ऐसी है जैसे- शैशव या पागलपन में किया गया कोई कार्य हो । यह भूल सदभावपूर्वक थी क्योंकि उसने अपने पति के भाई की बात पर पूर्ण विश्वास किया और कई वर्ष तक वह आया भी नहीं। इसलिये इसे तथ्य की भूल माना गया और महिला को द्विविवाह की दोषी नहीं ठहराया।
केस- शेराज बनाम रूटजेन (1926)- इस मामले में अभियुक्त को शराब बेचने का लाइसेंस इस शर्त पर दिया गया था कि वह ड्यूटी पर होने वाले किसी पुलिस कर्मचारियों को शराब नहीं बेचेगा, लेकिन एक दिन एक सिपाही उसके घर आया और शराब परोसने की मांग की। सिपाही ने उस वक्त अपनी आर्मप्लेट उतार रखी थी। उसने सद्भावपूर्वक यह विश्वास करके कि अब वह पुलिस कर्मचारी ड्यूटी पर नहीं है उसे शराब परोस दी। न्यायालय ने इसे तथ्य की भूल मानकर उस व्यक्ति को क्षमा कर दिया और कहा कि यह भूल सद्भावपूर्वक की गई थी इसलिए वह दोषी नहीं है।
केस- वरयाम सिंह बनाम सम्राट (1926)- इस मामले में A ने सदभावपूर्वक B एक मनुष्य को प्रेत समझता है और उसे घातक चोट पहुँचाता है। A किसी अपराध का दोषी नहीं ठहराया गया क्योंकि उसकी यह भूल सदभावपूर्वक थी।
केस- चिरंजी बनाम राज्य (1952)- इस मामले में अभियुक्त ने भ्रम में पड़कर अपने इकलौते पुत्र को बाघ समझा और उस पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया। तथ्य की भूल के कारण उसने ऐसा किया था और सोचा था कि मृतक को मारकर वह कोई गलत कार्य नहीं कर रहा है। मृतक को उसने एक इंसान नहीं समझा था बल्कि उसे खतरनाक जानवर समझकर उस पर हमला किया था, इसलिए वह किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया।
विधि की भूल (Mistake of Law)– इसका अर्थ “किसी विशिष्ट विषय पर किसी विधि के अस्तित्ववान होने या ना होने के विषय में भूल करना और इसके विषय में भी भूल कि विधि क्या है।
विधिशास्त्री ऑस्टिन के अनुसार विधि कि भूल के क्षम्य ना होने के दो कारण-
✓अगर विधि की भूल को स्वीकार कर लिया जाए तो न्यायालय को यह सुलझाना मुश्किल हो जाएगा कि क्या वह गुनहगार है या नहीं।
✓पक्षकारों द्वारा हमेशा विधि की भूल को ही अभिवाचित किया जाएगा हर व्यक्ति पहला बचाव यही लेगा।
लेकिन इसके बारे में कुछ जोरदार तर्क दिये गए हैं कि जब तथ्य की भूल को क्षम्य किया जा सकता है तो विधि की भूल भी क्षम्य होनी चाहिए। लेकिन औद्योगिक और वैज्ञानिक विकास के कारण समाज में नए आयाम खोले हैं प्रतिदिन विधियां बनाई जा रही है, विधियो का अम्बार लग गया है। चाहे कितना भी सावधान और होशियार व्यक्ति हो वह भी इसके बारे में नहीं जान पाता। दूरदराज के इलाकों में तो बिल्कुल भी जानकारी नहीं हो पाती। भले ही ये सुझाव दिए जाते हो कि विधि की भूल को भी क्षमा करना चाहिए लेकिन न्याय प्रशासन के ऐसा करने से एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
उदाहरण के लिए– संसद के किसी अधिनियम के द्वारा यदि किसी कार्य को आज दंडनीय घोषित किया जाता है और एक व्यक्ति एक दिन बाद इस कार्य को यह जाने बिना करता है कि जिस कार्य को वह करने जा रहा है वह दंडनीय घोषित कर दिया गया है तो जिस कार्य को वह करता है उसके लिए उसे दंडित किया जाएगा क्योंकि सिद्धांत यह है कि विधि की भूल क्षम्य नहीं है।
उदाहरण के लिए– भारत में एक निश्चित आयु से पहले विवाह करने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाए गए हैं तथा गरीब और अनपढ़ लोग जो दूरदराज़ गांव में निवास करते हैं उनके बारे में नहीं जानते होंगे इसके बावजूद कानून के खिलाफ कार्य करते हैं तो उन्हें दंडित किया जाएगा। बहुत से विधिशास्त्रियो को यह नियम अत्यधिक कठोर लगता है, लेकिन यह भी कहा जाता है कि यह नियम लोगों को व्यवहार के मामलों को सिखाने में मदद करता है।
क्या विदेशियो के द्वारा विधि की भूल क्षम्य या माफी योग्य है- नहीं।
केस- इसोप (1836)- एक विदेशी जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि वह इस देश की विधियों से अवगत नहीं होगा। वह भी इस सिद्धांत के दायरे बाहर नहीं है और उसको भी विधि की भूल के लिए दायीं ठहराया जा सकता है। उसके बारे में माना जाएगा कि जब वह किसी देश में जाता है तो उसे उस देश की विधि का ज्ञान होना चाहिए।