मुसलमान कौन है?
– प्रत्येक मुसलमान का धार्मिक कर्तव्य इस्लाम के पाँच सारभूत सिद्धान्तों पर केन्द्रीभूत है, जो निम्नलिखित हैं-
(1) तौहीद में पूर्ण विश्वास – ‘ मुसलमान’ शब्द “मुसल्लम-ईमान” शब्द से निर्मित हुआ है। ‘मुसल्लम-इंमान’ शब्द का तात्पर्य है- पूर्ण आस्था। किस बात में? कलमा में पूर्ण आस्था अर्थात् “लॉ इलाहा इल्लिल्लाह मोहम्मद उर रसूल उल्लाह” में आस्था। इस कलमा का अर्थ है-अल्लाह (ईश्वर) केवल एक है। पैगम्बर मोहम्मद अल्लाह के रसूल (दूत) हैं।
(2) नमाज – यह मुस्लिम धर्म का दूसरा महत्वपूर्ण कर्त्तव्य है। मुसलमानों का यह धार्मिक कर्त्तव्य है कि वे पाँच बार (प्रातः, मध्यान्ह, मध्यान्ह के पश्चात्, सूर्यास्त और रात्रि में) मक्का की तरफ अपना मुख करके नमाज (प्रार्थना) पढ़े। शुक्रवार के दिन सभी पुरुषों के लिये दोपहर के समय सामूहिक नमाज आवश्यक है।
(3) जकात (दान) – मुसलमानों का तीसरा धार्मिक कर्तव्य यह है कि वे अपनी आय का कुछ भाग गरीबों और फकीरों को दान करें और पुण्यार्थ संस्थाएं चलावें।
(4) रोजा – इस प्रयोजन के लिये रमजान का महीना सबसे पवित्र माना गया है और प्रत्येक मुसलमानको प्रातःकाल से सूर्यास्त तक सभी भोजन-पानी आदि से विरत रहना चाहिये।
(5) हज (तीर्थयात्रा)- इस्लाम धर्म का यह अन्तिम स्तम्भ है। ऐसे मुसलमानों को, जो व्यय वहन करने में समर्थ हों, जीवन में एक बार, वर्ष के एक विहित समय में, मक्का का पवित्र दर्शन अवश्य करना चाहिये।
किन्तु न्यायालयों के प्रयोजनार्थ, उपर्युक्त पाँचों सिद्धान्तों का पालन करना मुस्लिम होने के लिये आवश्यक नहीं है। ऐसा निर्णीत किया गया है कि मुस्लिम विधि के प्रयोजनों के लिये, वह व्यक्ति मुस्लिम माना जायेगा जो तौहीद और रसूल में विश्वास करता है अर्थात् जो यह विश्वास करता है कि प्रथमतः खुदा एक है और एक के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं, द्वितीयतः यह कि मोहम्मद साहब खुदा के दूत या रसूल थे।
अमीर अली का कथन है कि जो कोई इस्लाम धर्मावलम्बी है, अर्थात् जो अल्लाह के एकत्त्व और मोहम्मद की पैगम्बरी में विश्वास करता है, वह मुसलमान है।
नरौतकर्थ बनाम पाराखल के वाद में यह धारित किया गया था कि इस्लाम का सारभूत सिद्धान्त यह है कि अल्लाह एक है और मोहम्मद उसके रसूल(या दूत) हैं और इसके अतिरिक्त और कोई विश्वास कम से कम विधि के न्यायालयों के लिये निष्प्रयोज्य है।