राज्य का प्रतिनिधित्व दायित्व? Liability of state

राज्य का दायित्व (Liability of State)

राज्य अपने सेवक के अपकृत्यो के लिए कहां तक जिम्मेदार है, इस पर विचार करने के लिए हम इसे दो भागों में बांट सकते हैं-

1) राज्य के कार्य (Act of State) – इसमें वे मामले आते हैं जहां राज्य के सेवक उन विदेशियों को क्षति पहुंचाते हैं जिन पर राष्ट्रीय विधि लागू नहीं होती है।

2) राज्य का प्रतिनिधित्व दायित्व (Vicarious Liability of state)– इसमें राज्य के सेवकों द्वारा अपने ही नागरिकों के प्रति किए गए अपकृत्यो के लिए दायित्व का अध्ययन किया जाता है।

वाद नहीं लाया जा सकता था लेकिन 1947 में इंग्लैंड के कॉमन लॉ में अपकृत्य के लिए सम्राट के खिलाफ क्राउन प्रोसीडिंग्स एक्ट पारित होने के बाद पूरा बदलाव आ गया। अब सम्राट अपने सेवक द्वारा किए गए अपकृत्य के लिए वैसे ही जिम्मेदार है जैसे कोई गैर सरकारी व्यक्ति जिम्मेदार होता है।

भारत में स्थिति :- भारत में इंग्लैंड के क्राउन प्रोसीडिंग्स एक्ट 1947 की तरह कोई भी संवैधानिक प्रावधान नहीं है, जिसमें राज्य का उत्तरदायित्व दिया गया हो। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300 के अनुसार भारत संघ और राज्य सरकार वाद ला सकते हैं और उनके विरुद्ध वाद लाया जा सकता है, लेकिन ऐसा किन परिस्थितियों में किया जाएगा इसका वर्णन नहीं किया गया है। राज्य के दायित्व की आधुनिक स्थिति जानने के लिए गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट 1858 के प्रावधान जानना जरूरी है जिसके अनुसार राज्य ऐसे दायित्व के अधीन होगा जैसे 1858 के अधिनियम से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी होती थी।

केस- पेनिनसुलर और ओरिएंटल स्टीम नेविगेशन कंपनी बनाम सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया (1861)- इस मामले में कम्पनी का एक सेवक घोड़ागाड़ी से यात्रा कर रहा था। जब वह बंदरगाह के पास से गुजर रहा था तो सरकार के कर्मचारी गाटर लेकर जा रहे थे। घोड़े आवाज सुनकर भड़क उठे और लोहे से टकरा गए और क्षतिग्रस्त हो गए। कम्पनी ने सरकार के सेवकों की लापरवाही के लिए सरकार के विरुद्ध वाद दायर किया। न्यायालय ने कम्पनी को मुआवजा दिलाया।न्यायालय ने संप्रभु और असम्प्रभु कार्यों के बीच अंतर बताया।

संप्रभु कार्य– जिसे केवल सरकार ही कर सकती है। ऐसे कार्यों के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जैसे– विदेश संबंधित मामले, रक्षा संबंधित मामले आदि।

असम्प्रभु कार्य– जिन्हें सरकार के साथ कोई अन्य प्राइवेट व्यक्ति भी कर सकता है। ऐसे कार्यों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जैसे खाद्य आपूर्ति, परिवहन आदि।

केस- राजस्थान राज्य बनाम विद्यावती (1962)- इस मामले में राजस्थान सरकार के अस्थायी कर्मचारियों ने जीप की मरम्मत के बाद उसे तेजी से चलाया और पैदल यात्री को कुचल दिया। जिससे यात्री की मृत्यु हो गई। उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सिन्हा ने कहा कि जिस तरह से मालिक अपने नौकर के अपकृत्य के लिए दायीं होता है। इसी तरह से सरकार भी दायी है।

केस- कस्तूरीलाल रलियाराम जैन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1965)- इस मामले में कस्तूरीलाल सोने का व्यापारी था। पुलिस ने संदेह के कारण उसको रोक लिया तथा उसका माल मालखाने में जमा कर दिया। जांच करने पर उसे निर्दोष पाया गया तो उसने अपना सोना वापस मांगा। इसी बीच उसका सोना एक हेड कांस्टेबल पाकिस्तान लेकर भाग गया। राज्य सरकार ने कहा कि यह एक संप्रभु कार्य है और सरकार इसके लिए उत्तरदायी नहीं है। मुख्य न्यायाधीश गजेंद्र गडकर ने कहा कि मालखाने में कार्य है और राज्य इस अपकृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं है। में माल केवल पुलिस ही रख सकती है इसलिए यह एक संप्रभु कार्य है राज्य जिम्मेदार नहीं हैं।

मूल अधिकार और संप्रभु उन्मुक्ति के सिद्धांत

केस- रुदलशाह बनाम बिहार राज्य (1983)- इस मामले में पिटीशनर पर बिना मुकदमा चलाए 14 वर्ष तक जेल में रखा गया। न्यायालय ने राज्यों को 30,000 रुपये प्रतिकर देने का आदेश दिया, क्योंकि किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता और ना ही जीने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है।

केस- सहेली बनाम पुलिस आयुक्त, दिल्ली केस और नीलवती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य- इन मामलो में भी राज्य को जिम्मेदार माना गया।

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